विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरासलीला का अन्तरंग-2मइय बाँधती है ऊखल में, तो बँध जाते हैं। मइया की गोद में सिर रखकर रोने लगते हैं। सुदामा जी आते हैं तो उनको हृदय से लगा लेते हैं, प्रीतो व्यमुञ्चत् अब्बिन्दूनू नेत्राभ्यां पुष्करेक्षणः- टपाटप आँखों से आँसू गिरते हैं-पानी परात को हाँथ छुओ नहिं, नयनन के जल सों पग धोये ।। भला बताओ, जिसको आँख से आँसू गिरे प्रेम में वह भगवान? स्वयं भगवान अपने भक्त के प्रेम में रो रहे हैं। उधर कुण्डनपुर से चिट्ठी आयी तो बोलते हैं कि ब्राह्मणदेव, हमको तो नींद ही नहीं आती। तथाहमपि तच्चित्तो निद्रां च न लभे निशि। हमारा ऐसा मन लग गया है वैदर्भि में कि हमको तो रात-रात नींद ही नहीं आती। चिन्ता अनिद्रा, रोदन, सब तो है श्रीकृष्ण में! बोले भाई- ऐसे प्रभु से, ऐसे भगवान से जो इतना बड़ा हो करके अपने प्रेमी से, अपने भक्त से, इतना प्रेम करता है, यदि कोई प्रेम न करे, तो उससे बढ़कर के बुद्धिहीन और कौन होगा! गोपियाँ तो निष्काम प्रेमी हैं, गोपियों में काम आया कहाँ से? यहाँ आप देखो- उत्तम्भ्यन् रतिपतिं रमयाञ्चकार- गोपियों के हृदय में जो काम था उसको तो गोपियों ने भगा दिया था, परंतु अब रतिपतिं उत्तम्भयन् उद्दीपयत्- भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के हृदय में एक नये काम की स्थापना की; उनको नये दिव्यकाम से उद्दीप्त किया। माने प्राकृत काम को गोपियों ने छोड़ दिया था, जो अंग-संग से संबन्ध रखता है, जिसकी महात्मा लोग निन्दा करते हैं, जो स्वसुख की वासना है। अब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने हृदय में से एक नया काम पैदा किया। वह ब्रह्मा की सृष्टि में जो काम है सो नहीं; जो अधर्म और झूठ के वश में काम होता है सो नहीं; जो सृष्टि की परंपरा में काम है सो नहीं। भगवान ने एक भगवदीय काम की सृष्टि की- उद्दीपयन् उत्तम्भयन् रतिपतिं रमयाञ्चाकार- एक नया काम! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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