विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों की चाहतगोपी ने कहा- हमने षष्ठी बहुवचन के अर्थ में ‘नो’ शब्द का प्रयोग नहीं किया था, हमने तो ‘नहीं’ के अर्थ में किया था।
अर्थात् हमारे हृदय पर हाथ मत रखो- हमने तो यह कहा था, गोपियाँ बिलकुल निकल गयीं। देखो- असल में दुःख के अंत में सुख है, यह बात बिलकुल निश्चित है। दुःख देखकर घबराना नहीं, जब दुःख अपनी सीमा पर पहुँचता है, चढ़ते-चढ़ते पारा जब अपनी सीमा पर पहुँचता है तब एकाएक गिर जाता है। वहाँ भगवान प्रकट हो जाते हैं। देखो- भगवान के प्रकट होने की रात। वर्षाऋतु, कृष्णपक्ष, अष्टमीतिथि, अँधेरी रात; उस घोर अंधकार में भगवान का प्रकाश। और यहाँ गोपियों के घोर दुःख में परमानन्द का प्रकाश, यहाँ मृत्यु में जीवन का प्रकाश, यहाँ निरहम् में सच्चे अहं का प्रकाश, यहाँ जगत् में भगवान का प्रकाश, यहाँ जीव में ब्रह्म का प्रकाश। इति विक्लवितं तासां श्रुत्वा योगेश्वरः। भगवान ने गोपियों के मुँह से गोपियों के हृदय में जो प्रेमी की पराकाष्ठा है वह सुन ली, श्रुत्वा। बोले-इतनी गोपियों को कैसे मनावेंगे? योगेश्वरः प्रहस्य हँस गये। हँसकर बोले- गोपियों। हम जरा माखन लेने तुम्हारे पास आवें, हजार बहाने बनावें कि गोपी जरा सुन ले, हमारी ओर देख ले, तो क्या मान, क्या शान, क्या धर्मात्मा बनती थीं। रोज-रोज तो तुम अपार वामता से, उलटी चाल से, हमारे साथ चलती थी; और आज मैंने जरा दो मिनट के लिए उलटी चाल चल दी तो तुम्हारी यह दशा हो गयी। बस-बस, अब आगे से कभी उलटी बात मत बोलना, तुम्हारे दिल में जो बात छिपी थी, आज जाहिर हो गयी। सुन लो देवताओं। वृन्दावन के वृक्षो सुनो, लताओं सुनो, पशुपक्षियों सुनो, देखो- तुम गवाह रहना, आज दो मिनट में ही गोपियों की सिट्टी-पिट्टी स्वयं गुम हो गयी और ये हाथ जोड़कर कैंकर्य की प्रार्थना करने लग गयी हैं। ओ ललिता, ओ चंद्रावलि, ओ विशाखा, अब देखो कोई मुँह से नाम मत निकालना, हम कहें तो नाचना, हम कहें तो गाना, हम कहें तो खड़ी होना, हम कहें तो बैठ जाना; हम जैसे कहें वैसे करना, अब आज के बाद हमारे सामने उलटी चाल कभी मत चलना क्योंकि तुम लोगों की सब पोलपट्टी खुल गयी। तुम्हारे अन्दर न धैर्य है, न तुम्हारे अन्दर विवेक है। बोलीं- हाँ महाराज हम तो आप ही की हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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