विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास के हेतु, स्वरूप और कालशुक्ल पक्ष की प्रतिपदा काली होती है तो और कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा गोरी होती है। अच्छा ये जो घटा-बढ़ी होती है प्रकाश में, वह मुस्कान में होठों की कट जैसे होती है, कितने दाँत दिखते हैं, इसके कारण है। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा हो तो वह हँसती नहीं है और कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा मुँह खोलकर हँसती है, उसके बत्तीसों दाँत दिखते हैं। यह उसका हिसाब है। तो प्रत्येक तिथि को नित्या बोलते हैं और ये सोलह नित्या होती है और सोलह नित्या के एक-एक हजार कला भेद होते हैं। तो ऐसे संख्या सोलह हजार हो जाती है। एक बार की बात है- एक सज्जन ने पूछा- महाराज! कृष्ण भगवान ने और सब तो बहुत बढ़िया किया पर सोलह हजार जो ब्याह कर लिया, वह ठीक नहीं किया। हमने कहा- नहीं भाई! यह तो बहुत घटाते-घटाते कम करके ब्याह की संख्या बतायी गयी है। जितनी वृत्ति संसार में है, जितने प्राणी हैं, जितने मनुष्य हैं, जितने देवता है, जितने पशु-पक्षी हैं, उनके चित्त में जितनी वृत्ति होती है, पहले हुई और होगी, उनके साथ रास करने वाला वही है। अनन्त गोपियों के साथ रास विलास करने वाला है। उसके लिए केवल सोलह हजार बताना, यह तो उसकी तौहीन है। ये सोलह हजार नित्याएं हैं। इसी से- ‘ता रात्रीः वीक्ष्य’ माने जिनके लिए वरदान दिया था उन सब रात्रियों को देख करके। अब रात्रि किसको कहते हैं तो जो रमण समर्पण करे उसका नाम रात्रि है। ‘रा’ धातु जो है वह दान अर्थ में है और ‘आदान’ अर्थ में भी है। ‘रैदाने आदाने च’ जो दे और ले- दोनों काम करे- उसको रात्रि बोलते हैं। तो ‘ताः वीक्ष्य रात्रीर्वीक्ष्य शरदोत्फुल्लमल्लिकाः वीक्ष्य।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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