विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों की न लौट पा सकने की बेबसी और मर जाने के परिणाम का उद्घाटनजैसे भोग नष्ट हो जाते हैं, इंद्रियों की शक्ति क्षीण हो जाती है, मन में रुचि नहीं रहती है, शरीर सूख जाता है, चाहे भोगने वाला मरे, चाहे भोगे जानेवाला मरे, लेकिन संसार के विषय में वियोग जरूर है। संसार में कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जो हमेशा अपने पास रहे। जब एक दिन छूटेंगे ही तब जान बूझकर क्यों नहीं छोड़ देते? अगर संसार के विषय तुम्हें छोड़कर जायेंगे, तो तुम बड़ा दुःख होगा, परंतु अगर तुम छोड़कर चले गये तो छाती ठोंककर भरी सभा में खड़े होकर कह सकेंगे कि मैंने छोड़ दिया, तुमको छोड़ने का सुख होगा, त्याग-वैराग्य सुख मिलेगा, मालूम होता है कि यह गोपी बहुत विदुषी है, उसने धर्म का निर्णय दिया-
सबके असली प्यारे तुम हो, अगर तुमसे प्रेम नहीं किया तो प्रेम गलत रास्ते पर बह गया। किसी के घर में आया गंगाजल, लेकिन बदकिस्मती ऐसी, दुर्भाग्य ऐसा, कि फूटे बर्तन में रख दिया; सारा जल बह गया। प्रेम अमृत है, यह इधर-उधर बहाने के लिए नहीं है, यह तो ईश्वर को तृप्त करने के लिए है। अपने प्रेम से परमेश्वर को तृप्त कर दो। प्रेम यदि पति-पुत्रादि से किया तो दुःख अवश्यम्भावी है- ‘पतिसुतादिभिरार्तिदैः किम्।’ फिर गोपी बोली कि देखो, तुमने अपने रसीले बड़े-बड़े सुंदर-सुंदर नेत्रों से प्रेम रस की वर्षा करके हमारे हृदय में जो आशा-लता थी, उसका पोषण किया, और हमारा मन चारों ओर से हटकर तुम्हारे मन में लग गया। अब उस प्रेमलता को काटो मत। इसके बाद गोपी ने कहा- ‘कुर्वन्ति हि त्वयि रतिं कुशलाः’ संसार में बुद्धिमान् होने का लक्षण क्या है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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