विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों का समर्पण-पक्षअधिष्ठान की सेवा करने पर अध्यस्त की सेवा अपने-आप हो जाती है। ईश्वर की सेवा करो,
जैसे वृक्ष की जड़ सींचकर उसका कंधा, उसकी बड़ी-छोटी डाली, उसका फल, उसका फूल, सब सिंच जाता है; और जैसे प्राणों को भोजन देने से सब इंद्रियों को शक्ति मिलती है; इसी प्रकार यदि श्रीकृष्ण की पूजा की जाय, तो कृष्ण की पूजा में पति की, पुत्र की, सुहृद् की, सबकी पूजा हो जाती है, क्योंकि कृष्ण सबकी आत्मा हैं। सबके मूल हैं। कृष्ण की पूजा करो, तुम्हारे पति दीर्घायु हो जायेंगे, कृष्ण की पूजा करो, तुम्हारे पुत्र धनी हो जायेंगे, सब पढ़े-लिखे हो जायेंगे, कृष्ण की पूजा करो, तुम्हारे सुहृद् तुम्हारा बड़ा आदर करेंगे। क्योंकि असल में कृष्ण की पूजा में सुहृद् की, पति की, पुत्र की, सबकी पूजा है। कृष्ण सर्व के अधिष्ठान हैं, कृष्ण सर्व का द्रष्टा, सर्व का साक्षी, सर्वका आत्मा है। आत्मदेव की, भगवान् की, परमात्मा की, अधिष्ठान की पूजा करने से सबकी पूजा अपने-आप हो जायेगी। कृष्ण ने कहा- अरी गोपियों। तुमने कैसे पहचाना कि मैं वहीं हूँ, मैं वही ईश्वर हूँ? अब पहचान बताती हैं गोपियाँ कृष्ण की- ‘प्रेष्ठो भवांस्तनुभृतां किल बन्धुरात्मा’ तुम संपूर्ण शरीरधारियों के प्रेष्ठ हो, आप ईश्वर हैं. अतिशय प्रिय को प्रेष्ठ बोलते हैं। सबसे ज्यादा प्रेम किससे है? हे भगवान्। गौएं अपने बछड़े से उतना प्रेम नहीं करती थीं जितना प्रेम श्रीकृष्ण से करती थीं। दूध पिलाकर अपने बछड़े को छोड़ दें, और जाकर श्रीकृष्ण के सामने खड़ी हो जायँ! अच्छा, तबकी बात जाने दो, चमत्कार की बात बताते हैं। अभी ऐसी-ऐसी कृष्ण की मूर्ति हैं जहाँ गाय स्वयं जाती हैं और खड़ी हो जाती हैं, और उसके थन से दूध झराझर झर जाता है। मातेराम के पास एक शंकरजी की मूर्ति है, जहाँ गाय आकर शंकरजी के ऊपर खड़ी हो जाती है और उसके थन से दूध झर जाता है। ईश्वर की पहचान कैसी की हमने? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
प्रवचन संख्या | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज