विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रेम में सूखी जा रहीं गोपियाँ आखिर बोलींखैर आप देखो- अस्त्रैरुपात्तमषिभिः कुचुकुंगमानि तस्थुर्मृजन्त्य उरुदुःखभराः स्म तूष्णीम।। तो गोपियों ने कहा, कि यह हमारे हृदय पर जो कुमकुम-राग है; केसर का राग है, वह दुनिया का रंग है, संसार का रंग है। प्यारे से मिलने के लिए दिल में संसार की रंगीनी नहीं चाहिए, जिस प्यारे से मिलना है उसी का राग चाहिए, उसी का रंग चाहिए। इसलिए उन्होंने श्याम रंग आँखों से निकालकर अपने हृदय पर जो केसर का रंग था उसको पोंछ दिया और बोलीं कि हमारे हृदय में भी श्यामरंग ही है, केसर का रंग नहीं है। श्रवसोकुवलयनं गोपी कान में कमलाकर आभूषण धारण तो करती है, लेकिन नीलम का। श्रवसोकुवलयनं अक्षिणो अज्जनं आँखों में श्याम अज्जन लगाती हैं, और हृदय में हार पहनती हैं, परंतु वह भी नीला- यह महाकवि कर्णपूर का प्रथम श्लोक माना जाता है। श्रवसो कुवसो कुलयं अक्षणो अञ्जनं उरसो महेंद्र मणिदानं वृन्दावनरमणीनां। मण्नमखिलं हरिर्जयति- गोपियाँ सोने-चाँदी का आभूषण नहीं पहनती हैं, सोने-चाँदी से उनको प्रेम नहीं है; उनको अपने-अपने शरीर को सजाना है, पर श्याम रंग की वस्तुओं से सजाना है, कषाय रंग की वस्तुओं से नहीं सजाना है। उनको कषाय नहीं चाहिए माने उनको संसार का राग नहीं चाहिए। परमात्मा के साक्षात्कार के लिए हृदय का रागद्वेष रहित होना आवश्यक है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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