विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रेम में सूखी जा रहीं गोपियाँ आखिर बोलींइड़ा, पिंगुला, सुषुम्ना आदि, संपूर्ण नाड़ियों की अंतिम गति परमात्मा में है- ऐसा भी वर्णन है-
सैकड़ों नाड़ियाँ हैं इस शरीर में। उनमें से एक मूर्धा में जाती है। जो उस नाड़ी से, सुषुम्ना से चलता, उसे अमृतत्त्व की प्राप्ति होती है। तो श्रुति नाड़ी और वृत्ति ये गोपियों के आध्यात्मिक रूप हैं जो अहं तत्त्व आत्मा के प्रति समर्पित होती हैं; और आधिभौतिक रूप से वही ग्वालिनी हैं, जो श्रीकृष्ण के प्रेम में, भगवान् के प्रेम में मग्न हैं। अब जब ये वृत्तियाँ अहं के पास पहुँच गयीं, तो ठीक वैसे जब कोई नदी समुद्र में मिलने के लिए जाती हैं, एक ज्वार आया समुद्र में बड़े जोर से और महाराज नदी जी को उल्टा फेर दिया कि आओ लौट जाओ। आपने कभी देखा है संगम स्थल? नर्मदा मिलती है खम्भात की खाड़ी में, गंगाजी मिलती है बंगाल की खाड़ी में। तो जब समुद्र में ज्वार आता है तो उनको लौटाकर दूर कर देता है। और फिर थोड़ी देर में जब भाटा आता है तो नर्मदा का जल, गंगा का जल, जाकर समुद्र में मिल जाता है। मिलती हैं नदियाँ ही समुद्र में यह आधिभौतिक रूप हुआ। और ये वृत्तियाँ जो हैं एक बार विषय की ओर जाती हैं और दूसरी बार आत्मा में ही लीन होती हैं। यह आध्यात्मिक पक्ष हुआ। आधिदैविक पक्ष में ये गोपियाँ एक बार रोक दी जाती हैं कि ठहरो! तुम अपने बल पर हमको विषय करना चाहती हो? भला स्वयं प्रकाश आत्मदेव वृत्तियों के विषय कैसे हों? पर्ण स्वतंत्र, समर्थ, परमार्थ देव वृत्तियों के चपेट में कैसे आवें? इतना बड़ा जलग्रासी वह समुद्र, उसमें अपने बल पर नदी जाकर कैसे मिले? रोक दिया- ठहरो! क्या गति हुई? कृत्वा मुखान्यव मुँह लटक गया। क्यों? क्योंकि घर तो ये छोड़ चुकी हैं, संसार तो ये छोड़ चुकी हैं, वहाँ तो अब लौटकर जा नहीं सकतीं और जिनके लिए सबको छोड़ा, उन्होंने ना कह दिया, कह दिया हम अविषय हैं। यदि वे घर को फिर लौट जायँ तो अपने लक्ष्य से, अपने साधन से च्युत हो गयीं और यदि लौटती नहीं है, तो भी लक्ष्य प्राप्त नहीं होता दिखता। विषय भी नहीं करती और लौट भी नहीं सकतीं। इसलिए मुख लटक गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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