विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती‘लौट-जाओ’ सुनकर गोपियों की दशा का वर्णनअब देखो शरीर की ये दशा हुई कि पाँव से धरती खोदने लगीं और इंद्रिय की क्या दशा हुई- ‘अस्त्रैरुपात्तमषिभिः’ आँखों में आँसू आ गये और काजल जो लगाया हुआ था वह कपोल पर बहने लगा। और जो मन में आनन्द था उसकी जगह अब दुःख छा गया। बेहोशी होने लगी, अपने होश खो बैठीं। ये बेहोशी का चिह्न नहीं है, प्रेयसी का चिह्न है। श्रीकृष्ण से मिलन की तीव्र आकांक्षा। बोलना बन्द हो गया। आनन्द की जगह दुःख छा गया आँखों में आँसू आ गये, श्रृंगार बह गया, पाँवों से धरती खोदने लगीं, होंठ सूखने लगे, लम्बी-लम्बी श्वास चलने लगी, मुँह लटक गया। ये गोपियों की दशा हुई। जब कृष्ण ने कहा कि लौट जाओ, तो गोपियों के मन में आया कि श्यामसुन्दर, मुरलीमनोहर, पीताम्बरधारी, जो हमारा परम प्रियतम है, उसका स्वभाव तो बड़ा कोमल है, हमारे हृदय में उसके लिए जितना प्रेम है उससे भी हजारगुना, लाखगुना, करोड़गुना, प्रेम उसके हृदय में है; आज यह इतना कठोर क्यों हो रहा है? इसमें उसका दोष तो नही हो सकता, हमारा ही दुर्भाग्य है, हमारी ही बदकिस्मती है, कोई न कोई दोष हमारा ही होगा। तब क्या करना चाहिए? एक ने कहा- आओ इसका पाँव पकड़ते हैं, दूसरी ने कहा- नहीं सखी पाँव मत पकड़ो, किसी भी तरह शिर ऊपर उठाओ, आँख से आँख मिलेगी तो मुस्कुरा देगा। तीसरी बोली- आओ, प्रतिव्रतम् करें। अरे, जब यह बोलने पर उतारू है, तो हम भी बोल लें, अथवा यह जब हमारे साथ कटुबर्ताव बरत रहे हैं तो हम भी कटुता बरतें, आओ, व्रज में लौट चलें। देखो, फिर ये दौड़कर हमको मनाते हैं कि नहीं मनाते। पता तो चल जाय कि उनके दिल में क्या है? एक ने कहा प्राण ही त्याग दें! उनके सामने प्राण त्याग करें, अथवा इनको परोक्ष में त्याग करें? कहीं ऐसा तो नहीं है कि इसने हमको टकराया हो? क्या हम किसी दूसरी तरह की तो नहीं लग रही हैं? एक गोपी कहती हैं कि बात ऐसी तो नहीं है। क्या फर्क पड़ गया हमारे? भाई! सोच-समझकर कदम उठाना चाहिए कि हमको क्या करना चाहिए। इतनी कठोर वाणी सुनने के बाद भी हम जिन्दा रहती हैं या नहीं- क्या यह देखने के लिए ऐसी बात करते हैं? आज मालूम होता है हमारे मुख पर जो सौन्दर्य-माधुर्य रहता है था वो आज नही है। उसी को देखकर रीझ जाते थे, प्रसन्न हो जाते ते। आज क्या हो गया? आज हमने अपना मुँह ही कहाँ देखा? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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