विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपी के प्रेम की परीक्षा-धर्म का प्रलोभनबोले- वाह-वाह। प्रेम का यह स्वभाव ही है कि जिसके हृदय में आता है उसको पराधीन कर देता है। यही देखो- ज्ञान और प्रेम के स्वभाव में फर्क। ज्ञान हृदय में आता है उसको स्वतंत्र कर देता है और प्रेम जिसके हृदय में आता है उसको परतंत्र कर देता है। अगर तुम्हें प्रियतम के परतंत्र होने में डर लगता है तो प्रेम के रास्ते में पाँव नहीं रखना, भला। वह तो तुमको नचावेगा, गवावेगा, बैठावेगा, वह तुमको जो उसकी मौज होगी आटे की तरह तुमको गूँध देगा। यदि परतंत्र होने में डर लगता तो प्रेम के रास्ते पर नहीं जाना। ज्ञान का स्वभाव है स्वातंत्र्य और प्रेम का स्वभाव है प्रियतम्-पारतंत्र्य। दूसरे की परतंत्रता नहीं, अपने प्रियतम की परतंत्रता। यह प्रेम का स्वभाव है। तो बोले- ठीक है- तुम हमारे प्रेम में परंतत्र हो करके हमारे पास आयीं। ठीक है गोपियों- आगता ह्युपत्रं वः प्रीयन्ते मयि जन्तवः आगताः आ गयी हमारे पास, बिलकुल युक्तियुक्त है; हम तुम्हारी निन्दा नहीं करते। यह नहीं कहते कि तुमने कुछ गलती की है। तुम्हारे सरीखे प्रेमियों के लिए तो ये बिलकुल ही ठीक लगता है कि तुम प्रेम के पराधीन हो करके हमारे पास आ जाओ। अरे गोपियों! तुम्हारी बात तो क्या करें, तुम तो मनुष्य हो, और मनुष्य ही नहीं, हमारी जाति की अहीर हो, अहीर में भी कुमारी हो; किशोरी! तुम हमारे ऊपर प्रेम करके आ गयी हो तो क्या बड़ी बात है- यहाँ- प्रीयन्ते मयि जन्तवः- क्या तुमने देखा नहीं है कि गौएं भी हमसे प्रेम करती हैं, भैंसे भी हमसे प्रेम करती हैं- प्रीयन्ते मयि जन्तवः भौंरे भी हमे पीछे-पीछे डोलते हैं, चिड़ियाँ भी हमसे प्रेम करती हैं, मोर भी हमको देखकर नाचता है, कोयल भी हमको देखकर कुहुक-कुहुक करती है। हम जानते हैं कि संसार के सब प्राणी हमसे प्रेम करते हैं। तुम्हीं कोई प्रेम करने वाल नहीं आयी हो, भला! जो-जो हमसे प्रेम करे सबको ब्याह-ब्याहकर घर रखें तो कितनी गायें रखें, कितनी भैंसे रखें- प्रीयन्ते मयि जन्तवः जन्तुपद का अर्थ देखो ना। संसार के सब जन्तु। अरे बाबा। हम रास्ते में चलते हैं तो भी हमारे आसपास चलते-मँड़राते हैं, उनको भी हमारा ही रस प्यारा लगता है। तो जब भँवरे-भँवरी ही हमारे चारों तरफ मँड़राते हैं, गाय हमको देखना चाहती है, हरिणी हमको देखना चाहती है, सारस, हंस, विहंग हमको देखना चाहते हैं, तो कोई हमसे प्रेम करे यह हमारे लिए आश्चर्य की बात नहीं है। अरे। तुमने प्रेम किया, बहुत बढ़िया है, हम तुम्हारे प्रेम का अभिनन्दन करते हैं, तुम बिचारियाँ प्रेम से परतंत्र होकर हमारे पास आ गयीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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