विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीश्रीकृष्ण का अमिय-गरल-वर्षणयदि हम जीवन से, ब्रह्म अविनाशी जीवन से तुम्हारी सेवा करें तो भी तुम्हारी सेवा से उऋण नहीं हो सकते। लेकिन और तो नहीं जानते हैं ना कि श्रीकृष्ण गोपियों के ऋणी हैं। श्रीकृष्ण चाहते हैं कि सब जानें कि कितना प्रेम होने पर गोपियों के वे ऋणी हो गये, गोपियों का प्रेम धरती पर प्रकट हो, इसके लिए वे बोले- अरी गोपियों। यह तुम्हारा आगमन तो अस्थानीय है, माने अयुक्त है, ठीक मौके पर नहीं आयीं। अस्थाने क्यों? तो बोले-रजन्येषा घोररूप घोरसत्त्वनिषेविता । एक तो रात्रि है और वह भी भयंकर है। एषा रजनी तत्रापि घोररूपा- बड़ी घोर- सत्त्वनिषेविता और इसमें जो घोर प्राणी है- भूत, प्रेत, शंकरजी के गण, सर्प, बिच्छू, भेड़िये, गीदड़ ये सब जो दिनभर छिपे रहते हैं वह सबके सब रात में निकल आते हैं, इसलिए तुम अपने घर लौट जाओ। ‘प्रतियात व्रजं नेह स्थेयं स्त्रीभिः सुमध्यमाः’ स्त्रियों को रात के समय जंगल में नहीं रहना चाहिए वो भी तुमलोग कोई साधारण स्त्री नहीं हो- ‘सुमध्यमाः’ बड़ी सुन्दरी हो, तुम्हारा मध्यभाग बड़ा सुन्दर है। मध्यभाग के सौन्दर्य का अभिप्राय है सर्वांगसौन्दर्य। जैसे किसी को कहें कि तुम्हारी आँखें सुन्दर हैं तो उसका मतलब है कि वह पूर्ण सुन्दर है।प्रतियात व्रजं नेह स्थेयं स्त्रीभिः सुमध्यमाः । तुमको मालूम नहीं, तुम्हारे भाई ढूँढ़ रहे हैं, तुम्हारे पिता ढूँढ़ रहे हैं, तुम्हारे पुत्र ढूँढ़ रहे हैं, तुम्हारी माताएँ ढूँढ़ रही हैं, तुम्हारे पति तुमको ढूँढ़ रहे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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