विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपी दौड़कर गयीं कृष्ण के पास और कृष्ण ने कहा कि लौट-जाओ‘स्वागतं वो महाभागाः’ गोपियों को अरुचिकर लगा। वे रुक गयीं, अगर ये शब्द अरुचिकर न लगते तो वे जाकर महाराज चिपक ही जातीं, घुस जातीं शरीर में। तो जब टिक गयीं तो कृष्ण समझ गये कि इनको अप्रिय लगा; तो बोले- ‘प्रियं किं करवाणि वः’ क्या हमारे योग्य कोई सेवा है? निकाल दें? रास्ता भूलकर आयीं तो चलो घर बतला दें, लौट जाओ। क्या कोई गाय-बैल तुम्हारे भाग गये हैं? कोई बच्चा तुम्हारा खो गया है? आखिर शाम को किस भाव से जंगल में आयी हो?- ‘प्रियं किं करवाणि वः’ में कौन सी सेवा आपकी करूँ? हमको तो डर लग रहा है, क्या बात है, जल्दी बताओ! अब तो गोपियाँ उदास हो गयीं; चेहरा उतर गया। यह भाव की जो प्रतिक्रिया है वह स्त्री-शरीर पर ज्यादा होती है, खासकर प्रेमी शरीर पर ज्यादा होती है। तुरन्त मुँह लाल हो जाय, तुरन्त आँख से पानी गिरने लगे, तुरन्त मुँह लटक जाय! तो उसको यह नहीं समझना कि हमेशा कि लिए हो गया। वह तो थोड़ी देर के लिए होताहै। मैंने एक स्त्री को देखा तो एक साथ ही आँख से आँसू गिरे और मुँह से हँसे। तो देखा कि गोपियों का मुँह लटक गया, तो भगवान ने कहा- ‘समझ गया गोपयों’, मालूम पड़ता है हमको गाँव से बाहर समझकर कंस का भेजा हुआ कोई असुर आ गया गाँव में! क्या कहीं आग लग गयी? कहीं कोई उपद्रव हो गया तो क्या उसीसे दुःखी हो रही हो तुम लोग? क्या हमको बुलाने के लिए आयी हो तुम लोग? ‘व्रजस्यानामयं कश्चिद्’ व्रज मं संगल तो है न? अनामय अर्थात् कुशल तो है न? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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