विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास की भूमिका एवं रास का संकल्प-भगवानपि०रसो वै सः। रसं ह्येवायं लब्ध्वा आनन्दी भवति । अरे! तुमको रस चाहिए कि नहीं! आनन्द चाहिए कि नहीं? सोता रस चाहिए कि जागता रस? शान्ति की उपाधि से जो रस मिलता है वह सोत रस है और भक्ति की उपाधि से प्रीति की उपाधि से जो रस मिलता है वह जागता रस है। और परमात्मा कौन है? बोले सोते में भी रस वही है जागते में भी वही रस है। जिन लोगों ने सोते का ही नाम परमार्थ रख लिया वे परमात्मा को जानते थोड़े ही हैं। उनकी जान-पहचान नहीं है ईश्वर से! शान्ति हो चित्त में तब तो परमात्मा और विक्षेप हो तब कौन? सपाधि लग जाय तब तो परमात्मा और काम करें तब कौन? अरे! परमात्मा तो नाच रहा है। स्फुरणात्मक, विमर्शात्मक, विस्फुरणात्मक लालसात्मक, क्रियात्मक और द्रव्यात्मक- छह रूपों में परमात्मा प्रकट हुआ। स्वयं प्रकाश रूप एक और स्फूरणरूप द्वितीय, स्पर्श रूप तृतीय और इच्छारूप चतुर्थ और क्रियारूप पञ्चम और द्रव्यरूप षष्ठ, इन रूपों में परमात्मा प्रकट हो रहा है, द्रव्य परमात्मा है, सब क्रिया परमात्मा है, सब इच्छा परमात्मा है, सब विमर्श परमात्मा है, सब स्फुरण परमात्मा है। यह देखो, यह रासलीला क्या है? यह वही स्वयं प्रकाश है- अंगनामंगनामन्तरे माधवो, माधवं माधवं चान्तरेणांगना । गोपी है कृष्ण हैं, गोपी है कृष्ण हैं, फिर गोपी है कृष्ण हैं। शिर कभी किधर झुकाते हैं कभी किधर झुकाते हैं। कभी दाहिनी तरफ मुकुट झुक जाता है तो कभी बायीं तरफ। दायें स्थित जो राधा रानी हैं- उनको देखने के लिए शिर दाहिनी तरफ झुका लेते हैं और उनके ऊपर छाया करने के लिए बायें झुकते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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