विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजार-बुद्धि से भी भगवत्प्राप्ति सम्भव हैजिस प्रकार से चैद्य को सिद्धि मिली (चैद्य माने शिशुपाल, चेदि देश का राजा, उसका नाम चैद्य), अरे देखा नहीं, सुना नहीं, तुम्हारे दादा के यज्ञ में गाली दे रहा था शिशुपाल, द्वेष कर रहा था शिशुपाल और उसके शरीर में से ज्योति निकली और कृष्ण के शरीर में समा गयी, कृष्णाकार हो गयी। गाली देनेवाले की जब ऐसी गति हुई, तो प्रेम करने वाले को भला क्या गति मिलेगी। द्विषन्नपि हृषिकेशं किमुताधोक्षजप्रियाः । द्विषन्नपि हृषीकेशं- वह तो हृषीकेश से द्वेष करता था। द्वेष में दो चीज होती हैं और प्रेम में भी दो चीज होती हैं, प्रेम में स्मरण होता है और स्वाद आता है; द्वेष में स्मरण होता है और जलन होती है। एक में जलन है और एक में मजा है, लेकिन स्मरण दोनों में है। चैद्यः सिद्धिं यथा गतः । एक बाप के सामने दो बच्चे बैठे थे। देखा, बाप बैठा है तो एक दौड़कर पाँव छूने लगा, बाप ने झट उसको गोद में बैठा लिया। दूसरा दौड़ा कि मूँछें उखाड़ लें। उस जमाने में लोग मूँछ रखते थे, अब नहीं रखते। उस जमाने में पौरुष का चिह्न मानते थे। नाक में से बलगन सीधे मुँह में न पहुँच जाए इसके लिए भगवान् ने मूँछ बनायी थी। इतना ही नहीं जब हम लोग साँस लेते हैं तो हवा के कण साफ-साफ छन जायँ और हवा शुद्ध होकर नाक में घुसे इसके लिए भी हमारे पूर्वजों ने मूँछों की आवश्यकता समझी थी। इस पर पुरुषों ने कहा कि अगर यह कोई बात होती तो भगवान् स्त्रियों के लिए भी मूँछें देते कि उनका भी बलगम सीधे मुँह में न जाय और उनकी नाक में भी शुद्ध हवा जाय। भगवान् ने ऐसा पक्षपात क्यों किया? लेकिन पक्षपात यों किया कि स्त्रियों के बारे में भगवान् की धारणाएँ थी कि ये सड़क पर ज्यादा नहीं घूमेंगी, ऐसा उनका ख्याल था। अब इसमें क्या बात हुई कि जब बाप बैठा था और बच्चा मूँछ पकड़ने के लिए दौड़ा, नाक में उँगली डालने के लिए दौड़ा, तो जैसे उसने प्रणाम करने वाले को गोद में बैठाया था वैसे ही उसको भी उसने अपनी गोद में बैठा लिया। तो क्यों बैठाया? क्योंकि वह उसको भी अपना बच्चा समझता है- कथश्चिन्नेक्ष्यते पृथक् श्रीमद्भावगत में आया कि बच्चे भले न पहिचाने कि हमारा बाप है लेकिन बाप तो पहचानता है कि यह हमारा बेटा है। किसी भी भाव से जब अपना बेटा अपने पास आता है तो बाप उसके प्रति स्नेह ही करता है, वात्सल्य ही करता है, उसका भला ही करता है। द्विषन्नपि हृषिकेशं- शिशुपाल, दन्तवक्र, कंस, कंस भय से आया, शिशुपाल द्वेष से आया, पाण्डव लोग संबंध से आये, यदुवंशी लोग स्नेह से आये नारद आदि ईश्वर की भक्ति से आये और कुब्जा आदि काम से आयीं और गोपियाँ प्रेम से आयीं, लेकिन भगवान् यह नहीं देखते हैं कि कैसे आये, वे तो यह देखते हैं कि हमारे पास आते हैं। उनका यह ख्याल है कि दुनिया में जो हमारे पास आता है वह हमारी छाती से लगने के लिए आता है; उनको अपने सच्चिदानन्द होने का भाव है न! ये सब चित्सस्वरूप, आनन्दस्वरूप, रसस्वरूप हैं तो जो मेरी ओर आ रहा है, हृदय में ही लगने के लिए आ रहा है। द्वेष से आने वाले के हृदय में भगवान् का स्मरण जो है वह भगवान् के पास पहुँचा देता है और जलन जो प्रतिबन्ध है उसको मिटा देता हैं और अंत में भगवान् का वात्सल्य उसको हृदय से लगा लेता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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