विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजार-बुद्धि से भी भगवत्प्राप्ति सम्भव हैप्रश्न यह है कि ब्रह्म के रूप में गोपी नहीं जानती थी, तो यह जो कहा कि उनका प्राकृत-शरीर, गुणमय शरीर बदल गया, गुणप्रवाह में यह जो त्रिगुण हुआ है वह त्रिगुण से महत्त्व, महत्त्व से अहंकार और अहंकार त्रिविध होकर सात्त्विक,राजस, तामस होकर जो ज्ञान, क्रिया और द्रव्य के रूप में उनके बैठा हुआ था- वह कैसे मिट गया? उनको अप्राकृत दिव्य शरीर कैसे प्राप्त हुआ? गुणप्रवाहोपरमस्तासां गुणधियां कथम् । उनकी बुद्धितो गुण में लगी हुई थी, गुणों से पार कैसे पहुँच गयी। अब महाराज श्रीशुकदेव जी बोले कि देखो तुमको बार-बार मत समझायी समझ में तो तुम्हारे आता नहीं है, याद रहता नहीं है, और प्रश्न ठोंक देते हो। देखो क्या बढ़िया हम वर्णन कर रहे थे कि सब गोपियाँ कृष्ण के पास पहुँच गयीं और वर्णन करते कि कृष्ण ने यह कहा और गोपियों ने यह कहा, अब कहाँ हम वृन्दावन का रस सुनाते तो कहाँ यह बीच में ढेला फेंक दिया सवाल का। अब कोई प्रश्न करे और उसका उत्तर न दे तो वह बात भी ठीक नहीं जमती देखो, भगवान् की कथा जो होती है वह रसास्वादन करने के लिए होती है और आनन्द बढ़ाने के लिए होती है। सत्संग जो होता है संशय की निवृत्ति के लिए होता है। प्रश्नोत्तर जो होता है वह भी संशय की निवृत्ति के लिए और चिद्विषयक ज्ञान बढ़ाने वाला होता है। और योगाभ्यास जो है सत्यनिष्ठित करने के लिए होता है और रंगमंच पर ये जो भिन्न-भिन्न व्याख्यान होते हैं वे नेताओं के अपनी पार्टी बढ़ाने के लिए होते हैं, कुर्सी पर अपना अधिकार जमाने के लिए होते हैं। श्रीशुकदेवजी ने कहा- उक्तं पुरस्तादेतन्ते चैद्यः सिद्धिं यथा गतः। अरे-ओ, ओ परीक्षित। परीक्षित का अर्थ है परीक्षा करके, तब जो बात को पक्की करे। गर्भ में देख आये थे भगवान् को, तब लोक में उसकी परीक्षा करें। पूरी तरह से ये परीक्षित हैं- परीक्षित हैं माने जानते हैं; जिसका इम्तहान, जिसकी परीक्षा पूरी तरह से कर ली गयी हो उसका नाम परीक्षित है, उनकी परीक्षा क्या हुई है, कि वह जो ब्राह्मण का बेटा था, उसने कहा कि तक्षक तुमको काट लेगा। तक्षक तक्षक माने बढ़ई। जो वसूले से लकड़ी छीलकर आरी से चीरकर, काटकर, रन्दा मारकर लकड़ी को सुन्दर काम की बना देते हैं। तो यह तक्षक जो आया सो तो देहाभिमान को छील काटकर के फेंकने के लिए शुद्ध, बुद्ध, मुक्तरूप में परीक्षित को चमका देने के लिए रन्दा मारकर देहाभिमान छुड़ाने के लिए और पालिश करके गुणाधान के लिए मनन निधिध्यासन के द्वारा श्रवण के द्वारा उनका निर्माण करने के लिए आया। यह तक्षक कोई दंशक नहीं है। लेकिन मृत्यु का प्रसंग उपस्थित होने पर परीक्षित ने क्या कहा? यह ही उसकी परीक्षा है बोला- बाबा, एकदिन तो मरना था अभी सही, दशत्वलं गायतविष्णुगाथाः- आकर डसने दो तक्षक को, तुम तो भगवान् की लीला कथा सुनाओ। तुम मौत की परवाह छोड़कर कृष्ण कथा सुनने के लिए बैठे ही परीक्षित। मैंने तुमको पहले यह बात बतायी थी- उक्तं पुरस्तादेतत्ते चैद्यः सिद्धिं यथा गतः। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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