विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजार-बुद्धि से भी भगवत्प्राप्ति सम्भव हैइन्द्रियाँ बाहर विषयों से सुख दुहती हैं और भीतर बैठे हुए आत्मदेव को पहुँचाती हैं। असल में तो ये आत्मदेव की नौकर हैं सेवा आत्मा की करती हैं, प्यार आत्मा से करती हैं, उनको सुख पहुँचाकर सुखी होती हैं। बाहर से तो सिर्फ लाने का ही काम करती है। विषयों के साथ इनका असली ब्याह नहीं हुआ है। उनका असली ब्याहता तो वही है, इसी को परपुरुष बोलते हैं, भला! व्यवहार में इन्द्रियों का प्यारा विषय है और विचार करके देखो तो परमार्थ में अपना आत्मा है। चूँकि व्यावहारिक दृष्टि से ये आत्मदेव पतिदेव नहीं हुए, इसी से इनको परपुरुष बोलते हैं। अच्छा अब ज्यादा वेदान्त की बात आपको नहीं सुनावेंगे। ‘परं कान्तं विदुः’- गोपी तो समझती थी कि यह श्रीकृष्ण जो है हमारा यार है, हमारा प्यारा है, ब्रह्म तो वे समझती नहीं थी। कृष्ण ब्रह्म है कौन समझे। अरे बड़े-बड़े वेद के पंडित नहीं समझते हैं। वे सबको ब्रह्म बता देंगे पर कृष्ण को ब्रह्म नहीं बतावेंगे। ये क्या महामाया का खेल है कि बड़े-बड़े वेदान्ती कहेंगे कि हम ब्रह्म हैं और ये भी कहेंगे कि तुम ब्रह्म हो। (औरों को न कहें तो अपने चेलों को जरूर बोलेंगे।) लेकिन जब कृष्ण ब्रह्म आये तो अपने बराबर भी उनको नहीं मानते और अपने चेलों के बराबर भी नहीं मानते थे। वे कृष्ण को ब्रह्म नहीं कहते- न तु ब्रह्मतया वे गोपी बिचारी किसी ब्रह्मज्ञानी की चेली नहीं हुई, इसलिए उनको चेली बनाने के लिए भगवान स्वयं आये। गोपीनां स गुरुर्गति, कृष्ण गोपियों के गुरु भी हैं और प्यारे भी हैं। भागवत में यह लिखा है- अध्यात्मशिक्षया गोप्यः एवं कृष्णेन शिक्षिताः उनको अध्यात्म ज्ञान का उपदेश खुद दिया- खुद गुरु और खुद गति और खुद पति और खुद मति। गोपियों के गुरु कृष्ण गोपियों के पति कृष्ण, गोपियों की मति कृष्ण और गोपियों की गति कृष्ण। भागवत में- गोपीनां स गुरोर्गति कुरुक्षेत्र के प्रसंग में ये वचन हैं और गोपियों के पंचकोष का ध्वंस हुआ इसका भी वर्णन है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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