विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजार-बुद्धि से भी भगवत्प्राप्ति सम्भव हैभगवान् जय हयग्रीव बनेंगे तो भैंस होकर उनसे मैत्री कोई थोड़े जोड़ेगा। अरे, भगवान् मछली बनेंगे तो उनके साथ मछली बनाना पड़ेगा और कछुआ बनेंगे तो उनके साथ कछुआ बनना पड़ेगा। वे वराह बनेंगे तो उनके साथ वराह ही बनना पड़ेगा। वे मनुष्य बनेंगे तो उनके साथ मानुष ही बनना पड़ेगा। जैसे भगवान् का दिव्य शरीर है वैसे तुम भी देखो कि हमारा शरीर दिव्य है। अपने बाल को सफेद मत देखो, अपने दाँत को टूटा हुआ मत देखो, अपने चेहरे पर झुर्री मत देखो, अपने शरीर में हड्डी, मांस, चाम का ख्याल मत करो। ऐसा देखो कि दिव्य, चिन्मय, मंगलमय, सच्चिदानन्दघन विग्रह से हम भगवान् से मिल रहे हैं। जो शरीर माँ-बाप से पैदा नहीं होत्प्र वह गुरु-गुरुवाइन से पैदा होता है। बोले- हमारे गुरुजी तो हैं पर गुरुवानीजी तो हमने देखी नहीं। तो गुरु की जो शक्ति है वही गुरुआनी है। शक्ति सहित गुरु होता है। शिष्य की श्रद्धा और गुरु का अनुग्रह यही उसके माँ-बाप है। श्रद्धा और अनुग्रह से उस शरीर की प्राप्ति होती, तब वह रूप धारणकर भगवान् के पास जाना होता है। अच्छा, उस गोपी के गुणमय शरीर का त्याग हुआ और अप्राकृतिक शरीर की प्राप्ति हुई। अब महाराज वह जो बुढ़िया थी न, जो घर में बंद हो गयी थी, वह भी जवान बन गयी। श्रीकृष्ण के अनुरूप भोग्य उसका शरीर बन गया, उसके भी केश सुनहले हो गये, उसका भी शरीर देदीप्यमान हो गया, उसका भी दिव्य यौवन प्रकट हो गया, वह रास में नाचने योग्य हो गयी, गाने योग्य हो गयी, बजाने योग्य हो गयी, श्रीकृष्ण का आलिंगन प्राप्त करने योग्य हो गयी और उसका शरीर भक्तिभाव से परिपूर्ण ध्यान के द्वारा, भगवान् की सेवा में पहुँच गया। अब इस पर राजा परीक्षित ने एक शंका की? क्या शंका की- कृष्णं विदुः परं कान्तं न तु ब्रह्मतया मुने । असल में जहाँ साकार का प्रश्न हो उसमें निराकार को नहीं जोड़ना चाहिए और जहाँ निराकार का प्रश्न हो उसमें साकार को नहीं जोड़ना चाहिए। ये तो जो साकार के अश्रद्धालु लोग होते हैं उनके संतोष के लिए साकार को निराकार में जोड़कर बताया जाता है। असल में तो साकार निराकार एक ही है। एक बात और आपको सुनावें। जैसे ब्रह्म के बारे में जो भी बात शास्त्र में कही हो, वह बात हमारे बारे में भी बिलकुल सच उतरती है। क्योंकि यदि ऐसा न हो तो एकांगी ज्ञान होगा, वैसे ही हमारे बारे में जितनी बात है वह भी सब ब्रह्म में सच उतरती है क्योंकि अगर ऐसा न हो तो दोनों बराबरी के ब्रह्म नहीं निकलेंगे- एक छोटा ब्रह्म और एक बड़ा ब्रह्म हो जाएगा। इसलिए ये श्रीकृष्ण जो है उनमें चूँकि ब्रह्म के सारे लक्षण हैं ही, हमारे भी सारे लक्षण श्रीकृष्ण के अंदर है। अद्भुत लीला है यह, इस बात को समझो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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