विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजार-बुद्धि से भी भगवत्प्राप्ति सम्भव हैजिसने श्रीकृष्ण को भगवान समझा उसको तो भगवान की प्राप्ति हुई ही; परंतु यह जो गोपी जिनके पास दौड़ी जा रही है, जानती तो नहीं है कि ये भगवान हैं पर हैं तो वे भगवान ही। अज्ञान में भी कोई अमृत पी ले, अमर तो वह हो ही जाएगा। जारबुद्ध्यापि संगताः- अरे! बाबा! वही ब्रह्म है, परमात्मा है और अपने सब आवरण तोड़कर, फोड़कर प्रकट होकर आया है, उसको यशोदा मैया बच्चा समझकर प्यार करती हैं तो ब्रह्म से ही प्यार करती हैं, ग्वालबाल, सखा समझकर प्यार करते हैं तो भी ब्रह्म को ही प्यार करते हैं और गोपियाँ यार समझकर प्यार करती हैं तो परब्रह्म परमात्मा से ही प्यार करती हैं, क्योंकि दरसल वे परब्रह्म परमात्मा हैं। अब आगे देखो- ‘जारबुद्ध्याऽपि’ क्या बुद्धि है उनके चित्त में? ऐसे समझो कि हमारे हिंदू धर्म की यह बात है- कभी कर्मनाशा में आदमी को नहाना पड़ जाय, कभी वरुणा में नहाना पड़ जाए और कभी नर्मदा में नहाना पड़ जाय, परंतु उसके मन में भाव हो कि हम गंगा में स्नान कर रहे हैं, तो गंगा-स्नान का पुण्य उसको मिलेगा और यदि कदाचित् गंगाजी में स्नान कर रहा हो और गंगाजी को समझता हो कि कोई मामूली नदी है, तो हिंदू धर्म के अनुसार उसको गंगा स्नान का पुण्य ही मिलेगा। क्योंकि वह तो असली गंगा में नहा रहा है, यह हिंदू धर्म की मर्यादा है। केवल भाव में ही गुण नहीं होता, द्रव्य में भी गुण होता है। देखो, डॉक्टर लोग दवा देते हैं नाम नहीं बताते हैं कि क्या है; परंतु शरीर में जाने पर दवा गुण तो करती है। हमारे वैद्य लोग तो पहले बताते ही नहीं थे कि क्या देते हैं। ये महाराज खिलावें कबूतर का बीट (कोई औषधि है जिसको खाने से शरीर का कोई रोग दूर होता है।) लेकिन बताते नहीं थे कि रोगी नहीं खायेगा, उसको ग्लानि होगी। तो क्या हुआ कि वस्तु में भी गुण होता है। यहाँ वस्तु हैं श्रीकृष्ण और उनका गुण है कि जो उनसे मिलेगा, कृष्णरूप हो जाएगा। यह साँवरा सलोना यह मीठा-मीठा व्रजराजकुमार, जिसकी आँखें प्रेम रस से सनी, खिले कमल की पंखुड़ी- सी जिनमें गुलाबी शर्बत घुला है, जिसके होंठ सन्तरें की फाँक जैसे हैं उनमें क्या रस रखा है। जिसके कपोलों में कचौड़ी का निवास है। तो चलो आनन्द लो। अब एक गोपी यहाँ जो आयी श्रीकृष्ण के पास वह शरीर से कमरे में बंद थी और ध्यान से मिल गयी कृष्ण के साथ; और उसका देह छूट गया। तो जरा उस पर विस्तार से बात करते हैं। यह तो महाराज ऐसा ही हुआ कि प्रथमग्रा से मक्षिकापातः- पहले ग्रास में ही मक्खी गिर गयी। यह रासरसों का मंगल प्रारम्भ होना और उसमें पहले ही मौत का वर्णन आना। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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