विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजार-बुद्धि से भी भगवत्प्राप्ति सम्भव हैनमक के पहाड़ की चींटी गयी शक्कर के पहाड़ पर रहने वाली चीटीं के पास। तो बोली जैसा हमारे घर का पहाड़ वैसा तुम्हारे घर का पहाड़। शक्कर की चींटी ने कहा- बहिन! तुम्हारे मुँह में कुछ है तो नहीं? देखा तो अपने घर के नमक की डली थी। बोली- धो डालो इसको। फिर देखो नमक के स्वाद में और शक्कर के स्वाद में क्या फर्क है। लेकिन जब तक मुँह में नमक की डली पड़ी है तब तक शक्कर का स्वाद मालूम नहीं पड़ता है। यह जो संसार का स्वाद है, उससे संसारी लोगों को ईश्वर का स्वाद नहीं आता। संसारी लोगों को गुरु नहीं चाहिए, ईश्वर नहीं चाहिए, ज्ञान नहीं चाहिए, भक्ति नहीं चाहिए? इनको तो चाहिए- भज कलदांर, भज कलदारं, कलदारं भज मूढ़ मते। कर्मवासना और भोगवासना दोनों भगवद्भक्ति में, भगवत्प्राप्ति में रुकावट है, अड़चन है, प्रतिबन्धक है। गोपी को दोनों छूट गयीं। जब दोनों छूट गयी, तो भगवान के पास पहुँची। बोले ठीक है पहचानती तो नहीं भगवान को? अरे नहीं पहचानती है तो क्या हुआ? नारायण, एक हमारे महात्मा हैं दोनों आँक नहीं है वे जाते हैं बिहारी जी का दर्शन करने। वृन्दावन में रहते हैं। किसी ने पूछा कि देखते नहीं तो हो क्यों जाते हो? बोले- बाबा, हमारे आँक नहीं है तो क्या हुआ, उनके तो है, वे तो देखते होंगे कि आया है। तमेव परमात्मनं जारबुद्ध्यापि संगताः परमात्मा तो वही है- आत्मा का परम रूप। एक बड़ी मजेदार बात है- परमात्मा माने राधा, लक्ष्मी। उन राधा या लक्षमी का जो आत्मा अर्थात् परम प्रेमास्पद है उसका नाम है परमात्मा। रमायाः परपं रूपं, परमा रमा परमा, परा रमा परमा, रमायाः परमं रूपं परमेत्याभिधीयते। तस्या परमायाः आत्मा परमात्मा, जो उस परमा राधारानी का परम श्रेष्ठ है, परमप्रियतम है, उसका नाम परमात्मा। असल में जिससे हम प्रेम करें वह ख़ाली हमारा ही प्यारा नहीं होना चाहिए, औरों का भी प्यारा होना चाहिए। यदि राधारानी का अखण्ड प्रेम श्रीकृष्ण से न हो, तो दूसरी गोपियों के लिए प्रेम करने की रीति तो मिलेगी न। अच्छा क्या आप ऐसे से प्रेम करना चाहते हैं कि जिसे दुनिया में कोई न पूछता हो? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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