रासपंचाध्यायी -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 184

Prev.png

रासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती

जो जैसेहि तैसेहि उठि धायीं-3

करवा दें दर्शन आपको? नारदजी बोले- न-न, हम अपने दर्शन के लिए नहीं रो रहे हैं, हम तो चाहे जब कर लें; हम उन लोगों के लिए रो रहे हैं जो तत्त्वज्ञान प्राप्त करके मुक्त हो गये- क्योंकि उनको कृष्ण-दर्शन का यह सुख अब नहीं मिल सकता। हाय, हाय। यह सुख पाये बिना ही वे संसार से चले गये- इसलिए हमें रोना आता है।

नारायण। ये श्रीकृष्ण जो हैं- निवारण प्रकट परब्रह्म परमात्मा हैं। नेति-नेति जीवों के लिए हैं, परमात्मा के लिए नेति-नेति नहीं है। यह व्यतिरेकमुखी जो ज्ञान है कि निषेध करो फिर तुम ब्रह्म कहो, यह तो जिनमें अज्ञान का आवरण है उनके लिए है। परंतु जहाँ अज्ञान के आवरण का अत्यंताभाव है- अर्थात् पहले भी न कभी अज्ञा का आवरण था और न बाद में ज्ञान प्राप्त करके वह मिटाया गया, जहाँ अज्ञान का आवरण कभी आया ही नहीं, हुआ ही नहीं, जिनको कभी अज्ञान छुआ ही नहीं, वह श्रीकृष्ण- तमेव परमात्मानम्- वही है वही, दूसरा मत समझना। जिसका तीनों अवस्था में अन्वय है वह नहीं, जो तीनों अवस्था से व्यतिरिक्त है सो नहीं, जो सर्वत्म है- जिसमें तीन अवस्थाएं हैं जो हैं जिससे अलग नहीं हैं, तीन अवस्थाएँ जिसका स्वरूप हैं, ऐसा जो परमात्मा है- वह है श्रीकृष्ण। भले गोपी जारबुद्ध्यापि संगता- श्रीकृष्ण को पहचानती नहीं थी। परंतु व्यवहार में आप देखो नहि वस्तुशक्तिः बुद्धिमपेक्षते।

वस्तु- शक्ति को बुद्धि की अपेक्षा नहीं होती। अच्छा, अनजान में कोई नमक खावे, तो क्या उसकी जीभ पर नमकीन पानी नहीं बनेगा? अनजाने में कोई आग में हाथ डाल ते, तो आग क्या उसके हाथों को नहीं जलावेगी अनजान में कोई अमृत पी ले, तो क्या वह अमर नहीं हो जावेगा? अनजान में कोई विष पी ले, तो क्या नहीं मरेगा? तो जब वही निरावरण परमब्रह्म परमात्मा जीवों के कल्याण के लिए आया, यहाँ भी यदि बुद्धि की अपेक्षा होवे कि पहचानो कि ये परब्रह्म हैं तो अवतारकाल में और सामान्य काल में अन्तर ही क्या होगा? ये तो अवतीर्ण ही हुए हैं, इसलिए कि लोग बिना श्रवण-मनन-निधिध्यासन के भी अमरत्व प्राप्त हो जायँ। वह अवतीर्ण हो इसीलिए हुए हैं कि बिना माला फेरे, बिना मूर्ति-पूजा किए, कल्याण को प्राप्त हो जायँ। यह तो अहीर का छोरा है न-

देखो री, यह नन्द का छोरा बरछी मारे जाता है।
बरझी सी तिरछी चितवन से पैनी छुरी चलाता है।।
हमको घायल देख बेदर्दी, मन्द मन्द मुसकाता है।
ललित किशोरी जखम जिगर पै नौनपुरी भुरकाता है।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

रासपंचाध्यायी -अखण्डानन्द सरस्वती
प्रवचन संख्या विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. उपक्रम 1
2. रास की भूमिका एवं रास का संकल्प 12
3. रास के हेतु, स्वरूप और काल 28
4. रास के संकल्प में गोपी-प्रेम की हेतुता 40
5. रास की दिव्यता का ध्यान 51
6. योगमाया का आश्रय लेने का अर्थ 63
7. योगमायामुपाश्रित:-भगवान की प्रेम-परवशता 75
8. कृपायोग का आश्रय और चंद्रोदय 85
9. रास-रात्रि में पूर्ण चंद्र का दर्शन 96
10. रास में चंद्रमा का योगदान 106
11. भगवान ने वंशी बजायी 116
12. गोपियों ने वंशी-ध्वनि सुनी 127
13. श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों का अभिसार 141
14. जो जैसिह तैसिह उठ धायीं-1 152
15. जो जैसिह तैसेहि उठ धायीं-2 163
16. जो जैसेहि तैसेहि उठि धायीं-3 175
17. जार-बुद्धि से भी भगवत्प्राप्ति सम्भव है 187
18. विकारयुक्त प्रेम से भी भगवत्प्राप्ति सम्भव है 198
19. गोपी दौड़कर गयीं कृष्ण के पास और कृष्ण ने कहा कि लौट-जाओ 209
20. श्रीकृष्ण का अमिय-गरल-वर्षण 214
21. गोपी के प्रेम की परीक्षा-धर्म का प्रलोभन 225
22. ‘लौट-जाओ’ सुनकर गोपियों की दशा का वर्णन 238
23-24. प्रेम में सूखी जा रहीं गोपियाँ आखिर बोलीं 248
(प्रणय-गीत प्रारम्भ)
25. गोपियों का समर्पण-पक्ष 261
26. श्रीकृष्ण में रति ही बुद्धिमानी है 276
27. गोपियों की न लौट पा सकने की बेबसी और मर जाने के परिणाम का उद्घाटन 286
28. गोपियों का श्रीकृष्ण को पूर्व रमण की याद दिलाना 297
29-31. गोपियों में दास्य का उदय 307
32. गोपियों में दास्य का हेतु-1 338
33. गोपियों में दास्य का हेतु-2 353
34. गोपियों में दास्य का हेतु-3 366
35-36. गोपियों की चाहत 376
(प्रणय-गीत समाप्त)
37-39. प्रथम रासक्रीड़ा का उपक्रम 393
40. रास में श्रीकृष्ण की शोभा 429
41. रास-स्थली की शोभा 441
42. रासलीला का अन्तरंग-1 453
43. रासलीला का अन्तरंग-2 467
44. रासलीला का अन्तरंग-3 480
45. रासलीला का अन्तरंग-4 494
46. अंतिम पृष्ठ 500

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः