विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजो जैसिह तैसेहि उठ धायीं-2संगमविरहविकल्पे वरमिह विरहो न संगमस्तस्य यहाँ है तो, ‘तस्याह’ लेकिन चैतन्य महाप्रभु ने इसको तस्य कर दिया है। शान्ति कहाँ से मिलेगी? मजा क्या आवेगा? यह तो जिसको दुःख है उसी को सुख होता है। भगवान् का विरह जिसको जब जगता है और सताता है तो कैसा होता है- उत्तापीपुटपाकतोऽपि गरलग्रामादपि क्षोभणः मैं बौरी ढूँढ़न चली रही किनारे बैठ । तो, गोपी को ध्यान लग गया और ध्यान में भगवान् से ऐसी मिली कि उनको पान खिलावे, उनके बाल सँवारे, उनका पीताम्बर सुधारे, उनके हृदय पर अपना सिर रख दे, ऐसी मिली कि उसको दर्शनसमानाकार वृत्ति हो गयी, भूल गया कि ध्यान है, उसका ख्याल हुआ कि हम सचमुच मिल गये भगवान् से। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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