विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजो जैसिह तैसिह उठ धायीं-1अब देखो, इसमें भी एक बात है। प्रियतम के मन में उत्सुकता है, वे बुलावें सो तो ठीक है, परंतु यदि तुम्हारे मन में उत्सुकता नहीं है तो तुमको उनका बुलाना सुनाई नही पड़ेगा। अरे, इधर भी तो चाहिए कुछ भाई। बोले- उनकी जब मौज होगी तब आकर हमसे मिल लेंगे। अरे बाबा, तू जा नही सकता, तो खिड़की पर खड़ा होकर रास्ते की ओर देख तो सही। गोपियों ने हृदय में तो उत्सुकता पहले से थी। मिलेंगे यह आशा थी और अब आते हैं, अब आते हैं, अब आते हैं- यह प्रतीक्षा थी और उनके बिना प्राणों की व्याकुलता थी। आओ, प्राणनात। अब प्राण लगे सियरान-प्राणनाथ, पधारो। अब तुम्हारे बिना हमारे प्राण शिथिल पड़े रहे हैं। भगवान् के लिए- आशाबन्धः समुत्कण्ठा नामगाने सदा रुचिः । दिन द्वै में बात फैल जइहैं । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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