विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीजो जैसिह तैसिह उठ धायीं-1हम ये बातें आपको गोपियों के प्रसंग में सुना रहे हैं। गोपियाँ अपने-अपने कर्म में लगी हैं और श्रीकृष्ण बाँसुरी बजा रहे हैं। तो गोपियाँ कर्म का जो फल है उसको प्राप्त कर लें तब कर्म छोड़े या कर्म पूरा कर लें तब कर्म को छोड़ें? न तो फल पाना अपने हाथ में है और न तो कर्म को पूरा करना अपने हाथ में है। अगले क्षण क्या होगा यह मालूम नहीं। क्या दुकान का काम कभी पूरा होगा? अरे भाई, वह तो पीढ़ी-दर-पीढ़ी के लिए खो ली गयी है। दुकान पूरा करने के लिए तुम काम नहीं करते हो, अपनी जिंदगी पूरा करने के लिए काम करते हो- यह बात आप समझो! जिसको छोड़ना होगा वह फल की पूर्णता पर नहीं छोड़ेगा, वह दुकान की पूर्णता पर नहीं छोड़ेगा; वह तो जब भगवान् के चरणों में लगन लगी, जैसे बुलावा आता है, तभी सबको जाना पड़ता है; तब सब काम छोड़कर जाना पड़ता है। काम जो किया जाता है वह फल की पूर्णता के लिए नहीं और कर्म की पूर्णता के लिए नहीं, अपने पास अब से लेकर और प्रियतम के बुलावा आने के बीच में जो समय है, उसको भरने के लिए किया जाता है। श्रीरामानुज सम्प्रदाय में इसका नाम कालक्षेप है। वह समय काट रहे हैं। एक महात्मा थे। वे दन भर तिल का चावल अलग-अलग करते थे और शाम को फिर मिला देते थे। और दूसरे दिन फिर अलग करते और शाम को फिर मिला देते? बोले- भाई क्या कर रहे हो? तो कहा- ‘यावत्र विमोक्षेऽथ सम्पत्स्ये’ अब से लेकर जो विदेह मोक्ष के बीच में समय है उसको भर रहे हैं। क्योंकि हमको न कुछ लेना है न कुछ देना है, न स्वर्ग जाना है, न चेले को उपदेश करना है, और न मठ-मंदिर बनाना है, समय ही भरना है सो समय भर रहे हैं। ये महात्मा लोग तो समय भरते हैं; और प्रेमी लोग? वे प्रतीक्षा करते हैं। अरे, काम करते रहो और कान जरा खड़े रखो। सावधान। साधु सावधान। जब भगवान् बुलावें तब कहीं ऐसा न हो कि तुम प्रमाद में उनकी बाँसुरी न सुन पाओ। दुहन्त्योभिययुः काश्चिद् दोहं हित्वा समुत्सुकाः । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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