विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीश्रीकृष्ण के प्रति गोपियों का अभिसारखण्डन-खण्ड-खाद्य वेदान्त का उच्च कोटिका तर्कयुक्त, प्रमाणयुक्त, युक्तियुक्त, अनिर्वचनीयता का प्रतिपादक दर्शनशास्त्र का उच्च कोटि का ग्रंथ है। उसमें भी यही बात है कि ईश्वर जब अपनी ओर बुलाता है, पकड़ता है, कहता है कि आओ हमारी तरफ, तभी जीव अद्वैत तत्त्व की ओर चलता है; नहीं तो दुनिया में हजारों लोग मर रहे हैं- जी रहे हैं। हजारों लोगों में से कोई एक इधर चलता है-मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये । यह जो वंशीवादन है, यह उसकी कृपा है, प्रेमरस की वर्षा है, आकर्षण है, विज्ञापन है; यह चुम्बक है अपनी ओर खींचने के लिए। वह वंशीध्वनि सुनी। गोपियों ने वह वंशीध्वनि सुनी। कैसी है वह? तो बोले- ‘मनोहरमपि अनंगवर्द्धनं, मनोहरमपि मनोजवर्द्धनम्।’ एक ओर तो वह वेणु – नाद मन का कहरण करता है और दूसरी ओर मनोज को बढ़ाता है। यह वासना जिसको बोलते हैं, वह वासना यदि संसार की है तो बाँधने वाली है और यदि ईश्वर की है तो छुड़ाने वाली है। संसार वासना बन्धन का हेतु है और ईश्वर की प्राप्ति की वासना मोक्ष का हेतु है। यतो यतो विरज्यते विमुच्यते ततः ततः। एक प्रेम वह है जो संसार से छुड़ा दे और एक प्रेम वह है जो संसार में बाँध दे। भगवान जो प्रेम देता है वह संसार में बाँधने वाला प्रेम नहीं, संसार से छुड़ाने वाला होता। अगर यह ख्याल न हो कि वैकुण्ठ में लक्ष्मीजी सेविका हैं। पाँव दबाती हैं, शेषनाग हैं, क्षीरसागर है और जगदीश्वर मिलेंगे, तो कौन वैकुण्ठ जाने की इच्छा करेगा? घर-द्वार छोड़कर वैकुण्ठ जाने की इच्छा क्यों? स्वर्ग से वैराग्य किसको हो? यदि अपने भीतर सुख प्राप्त करने की लालसा न हो तो बाहर छोड़ करके आँख बन्द करके भीतर कौन देखे? तो ये भगवान बुलाते हैं। अनंगवर्द्धनम्- ईश्वर विषयक काम को बढ़ाती है यह वंशीध्वनि। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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