विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों ने वंशी-ध्वनि सुनीश्रीकृष्ण कहते हैं जब जो गोपियाँ अपने शरीर का श्रृंगार करती हैं, वह अपने शुख के लिए नहीं, अपने सौन्दर्य के लिए नहीं। वे कहती हैं यह कृष्ण का शरीर है, इसको रूखा कैसे होने दें? चिकनाकर रखना चाहिए। ये कृष्ण के बाल हैं। इनको रूखा कैसे होने दें, चिकना रखना चाहिए। यह कृष्ण शरीर है, स्वस्थ रखना चाहिए। ये कृष्ण के कपड़े हैं, मैले कैसे होंगे? निजांगमपि या गोप्यो ममेति समुपासते । गोपी अपने शरीर की सेवा करती है, लेकिन शरीर को अपना समझ करके नहीं, कृष्णा का समझकर मेरा समझकर करती हैं। ताभ्यः परं न मे किञ्चिन्निगूढ़ः प्रेमभाजनम् ।। जिस गोपी ने अपने जीवन को, अपने प्राण को, अपने हृदय को, अपने जीने को, अपने मरने को, अपने सर्वस्व को मेरा कर दिया, उस गोपी के काम का नाम कोई काम है? वह प्रेम है। श्रीकृष्ण ने चीरहरण के प्रसंग में स्वयं कहा- न मय्यावेशितधियां कामः कामाय कल्पते । ‘दुनिया में किसी के प्रति कामना करो तो उसमें से बीज निकलेगा; परंतु यदि हमारे- (कृष्ण के) प्रति कामना करो, तो उसमें से बीज नहीं निकलेगा’ तो, यह भगवान् की वंशी श्रीकृष्ण के प्रति काम, कृष्ण के प्रति मिलन की आकांक्षा जगाने वाली है। सुनकर गोपियों के क्या दशा हुई। यह आगे बतायेंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
प्रवचन संख्या | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज