विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों ने वंशी-ध्वनि सुनीशुकी गोपी इनका नाम है। फिर ये व्रज में किस-किस नाम से प्रकट हुए। यह सब पद्मपुराण में है। गीताप्रेम से हिंदी में जो पद्मपुराण छपा है, उसके पाताल-खण्ड का अधिकांश छोड़ दिया है, भला! उसमें वे कथाएँ नहीं छापीं। वैसे पद्मपुराण जहाँ-जहाँ से संस्कृत में छपा है, आनन्द आश्रम से, कलकत्ता से, हमारे पास कितनी तरह के पद्मपुराण हैं। उन सबमें है यह पद्मपुराण के पाताल खण्ड में कथा आती है। तो संसार की कामना से भगवत कामना जगे। प्रेमैव गोपरामाणां कामयित्यगमत्प्रथाम् । गोपियों के हृदय में प्रेम है। वे श्रीकृष्ण को सुख देना चाहती हैं। एक ने श्रीराधारानी से पूछा- तुम श्रीकृष्ण पर रुष्ट क्यों होती हो? रूठती क्यों हो? श्रीराधारानी ने कहा- मैं जानती हूँ कि मेरे बिना उनको बहुत तकलीफ होती है, मेरे बिना वे सुखी नहीं हो सकते, मैं उनके प्रेम को जानती हूँ। लोग उनको घेर लेते हैं; रोक लेते हैं। कभी यशोदा मैया रोक लेती है, कभी ग्वालबाल रोक लेते हैं, कभी ग्वालिनी रोक लेत है। तब वे बिना मनके उनके साथ रुक जाते हैं और दुःख पाते हैं। में तो उनसे यूँ रूठती हूँ, उनके ऊपर नाराज होती हूँ, कि वे लोगों का लिहाज करके स्वयं अपने सुख से वंचित हो जाते हैं। उनके आने से हमको सुख मिलेगा, इसलिए हम नाराज नहीं होती हैं; हमारे पास न आने से जो उनको भीतर-ही-भीतर दुःख होता है, उस दुःख पर मैं नाराज होती हूँ कि क्यों नहीं आये मेरे पास। प्रेमैव गोपरामाणां- गोपियों का प्रेम ही संसार में काम के नाम से प्रसिद्ध है, क्योंकि गोपियों ने अपने प्रेम का विज्ञापन नहीं किया। जिस समय यह बात कही जाती है कि हमारा प्रेम है, तो प्रेम जूठा हो जाता है। उसको बाहर की हवा लगती है और लड़खड़ाता है। प्रेम सुख देने के लिए होता है-इत्युद्धवादयोप्येनं वाञ्छन्ति भगवत्प्रियाः । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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