विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों ने वंशी-ध्वनि सुनीतो बोले- कि बेटा अब ब्याह कर लो! क्योंकि जब ब्रह्माकार वृत्ति की जरूरत तुमको नहीं है और कुछ न कुछ किए बिना मानोगे नहीं, दुकान करोगे, नौकरी करोगे, तो ब्याह कर लो। तो, यदि तुमको कृष्ण-काम नहीं चाहिए, प्यारे कृष्ण की कामना तुमको नहीं चाहिए, तो दुनिया का काम चाहिए। अरे, रुपये की वासना तुम्हारे मन में, क्रोध की वासना तुम्हारे मन में; भोग की वासना तुम्हारे मन में, कुटुम्ब की वासना तुम्हारे मन में, देह की वासना तुम्हारे मन में, स्त्री, पुत्र, ऊँची कुरसी, प्रतिष्ठा की वासना तुम्हारे मन में, सुख-सुविधा की कामना तुम्हारे मन में, और जब श्रीकृष्ण-विषयक कामना की चर्चा आवे, तो कह दो कि हमको काम नहीं चाहिए? इसका मतलब यह हुआ कि हम संसार की कामना को अपने हृदय में रखना चाहते हैं और भगवत्- चर्चा की कामना को नहीं रखना चाहते। अरे, यह तो वह काम है, भगवत्- काम, जो संसार के काम को मिटा दे। जो उसको चाहेगा वह दुनिया की चीज को कैसे चाहेगा? जिसके दिल में वह बस जाएगा, जो उसको पसंद कर लेगा कि हम उससे ब्याह करेंगे, उसकी रुचि दुनिया में किसे से ब्याह करने की कैसे होगी? वह तो सम्पूर्ण वासनाओं को मिटाने वाली वासना है। इसलिए श्रीकृष्ण की वंशी गोपियों के हृदय में जिस काम का उदय किया वह काम, संसारी काम नहीं संसारी कामना को मिटाने वाला काम है, उससे संसारी कामना मिटती है। चलो श्रीकृष्ण की लीला में, वंशीध्वनि सुनो- निशम्य गीतं तदनंगवर्द्धनम् ‘तदनंगवर्धनम्’ माने तत्संबंधी अनंगवर्द्धन ‘तत्सबंधिनः अनंगस्य वर्द्धनम्, तत्संबंधिनं अनंग वर्द्धयति इति तदनंगवर्द्धनम्’ यह वंशीध्वनि कृष्ण संबंधी जो प्रेम है उसको बढ़ाने वाली है। उद्धवजी ने प्रश्न किया- कृष्ण! गोपियों में क्या विशेषता है जिसके कारण तुम उन्हें चाहते हो? देखो- उद्धवजी ने गान किया-या दुस्त्यजं स्वजनमार्यपथं च हित्वा, भेजुर्मुकन्दपदवीं श्रुतिभिर्विमृग्याम् ।। श्रुतिभिर्विमृग्याम्- अभी वेद जिसको ढूँढते हैं। आज ही मैं पढ़ रहा था पद्मपुराण में उग्रतपा और श्रुततपा बड़े-बड़े ऋषि-महर्षि अष्टादशाक्षर मंत्र का लाखों-करोड़ों की संख्या में जप करके जन्म जन्मान्तर में गोपी-भाव को प्राप्त होते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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