विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों ने वंशी-ध्वनि सुनीअब वह वंशीध्वनि श्रीकृष्ण के हृदय की वेचना के साथ, श्रीकृष्ण के हृदय के माधुर्य के साथ, श्रीकृष्ण के हृदय में जो आनन्द है, रस है, प्रेम है उसके साथ- वह स्फुट और मधुर कलध्वनि गोपियों के कर्ण-कुहर से उनके हृदय में प्रविष्ट हुई। निशम्य- गोपियों ने सुन लिया। कैसी ध्वनि? तदनंवर्द्धनम्- तद्गीतं अनंग वर्द्धनम्। ‘अनंगवर्द्धनं तद् गीतं निशम्य’। बोले- बाबा। यह क्या परमार्थ की बात है? अनंगवर्द्धन माने होता है काम को बढ़ाने वाला। सीधे-सीधे यही उसका अर्थ है। अर्थ कभी-कभी बदलते हैं, बदलते तब हैं जब पंडित लोग चाहते हैं, क्योंकि वैयाकरण लोग व्युत्पत्ति के प्रेमी होते हैं। जो भक्त लोग होते हैं, भागवत लोग होते हैं, वे भाव के प्रेमी होते हैं। तो, ‘अनंगवर्द्धनं’- अनंग माने काम, बोले- भाई। ये काम की इतनी क्या महिमा है? भगवान् की वंशीध्वनि काम बढ़ाती है? अरे! बाबा, तुमको काम तो दिखाता है, यह क्यों नहीं दिखता कि किसके लिए काम बढ़ाती है? किसके लिए? वैसे तो श्रुति में आत्मकामः शब्द का भी प्रयोग होता है, पर्याप्त काम शब्द का पभी प्रयोग होता है। सृष्टि के पूर्व जब महाप्रलय में परमात्मा था केवल, मायासहित, वहाँ वर्णन आता है- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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