विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों ने वंशी-ध्वनि सुनीभगवान ने कहा- हमारे लिए हमसे भढ़कर तो कोई रस है नहीं हम भोग नहीं करेंगे तो लीला बनेगी नहीं। इसलिए अपने हृदय में विद्यमान स्वरूपभूत जो रस है, आनन्द-रस, उसको भगवान ने बाँसुरी के द्वारा गोपियों के कान में भर दिया और कान के द्वारा उनका हृदय भर गया; जब वे आनन्द रस से पूर्ण हो गयीं। तब वह रस उनके मुख से छलका, उनकी आँख में- से छलका, उनके कपोलों से छलका, उनका हृदय आनन्द से भर गया। उनके रोम-रोम से आनन्द के फुहारे छूटने लगे- बौछारें उठने लगीं। तब वह भगवान ने कहा कि यह आनन्द हमारा भोग्य है। भगवद्-भोग्य आनन्द स्वयं भगवान हैं। तो पहले भगवान ने बाँसुरी के द्वारा अपने आनन्द को गोपियों के जीवन में भर दिया और फिर यह रासलीला की। निशम्यगीतं तदनंगवर्धनम् ओंकार का समूचा अर्थ निगल लिया बाँसुरी ने और संपूर्ण जगत् ब्रह्म हो गया। छूट गया ध्यान सनकादिकों का! छूट गया अमृत देवताओं का। वंशी ने कहा- अब दुनिया में काम का राज्य रहेगा? बोले- कि जब लोग विषय को चाहते हैं तब काम का राज्य गलत होगता है और जब लोग भगवान को विषयवस्तु बना लेते हैं, तब काम का राज्य सही होता है। विषय के भेद से कामना निकृष्ट है और विषय के भेद से कामना उत्कृष्ट है। कामना के विषय भगवान हैं तो कामना उत्कृष्ट है। बोले- हम भगवान श्रीकृष्ण से प्रेम करते हैं। यह विषयानन्द नहीं, ब्रह्मानन्द है, ब्रह्मानन्द नहीं भजनानन्द हैं; तुमको, प्रेमानन्द मिलेगा। निशम्य गीतं तदनंगवर्द्धनं व्रजस्त्रियः कृष्णगृहीतमानसाः । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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