विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों ने वंशी-ध्वनि सुनीकहा- क्यों? तो बोले- उसकी मुक्ति में तो कोई बाधा नहीं पड़ती, मुक्त तो है, परंतु यदि पहले से उपासना का संस्कार है तब तो ‘नेति-नेति’ से निषेध के अनन्तर स्वरूप-स्थिति होने पर इस सच्चिदानन्दघन सगुण ब्रह्मा का आविर्भाव तत्त्ववित् के सामने हो जायेगा और यदि उपासना का संस्कार नहीं है ‘नेति- नेति’ का ही प्रबल संस्कार है तो विज्ञानान्दघन ब्रह्म से एक होने पर भी इस रस का आविर्भाव नहीं होता है। इसलिए आओ चलो एक बार वृन्दावन। रे मन ! वृन्दाविपिन निहार । वृन्दावन में आज क्या हो रहा है नारायण? बोले- शरद ऋतु है और भगवान् के द्वारा रासलीला के लिए स्वीकृत रात्रियाँ हैं, जिनका दान भगवान् ने गोपियों को कर दिया है और वे गोपियाँ हैं जिनका प्रणय-समर्पण भगवान् ने स्वीकार कर लिया है। बेला, चमेली खिल रही हैं। श्रीकृष्ण ने वीक्षण करके अपने लिए आनन्ददायी बनाया। योग-माया का आश्रय लेकर भगवान् ने विहार का संकल्प किया। आधिदैविक चंद्रमा का उदय हुआ। जनता का शोक दूर हुआ। सारी सृष्टि आनन्द में मग्न हो गयी। श्रीकृष्ण ने देखा-अखण्ड-मण्डल-रमाननाभ, नवकुंकुमारुण, कुमुद्वान, चंद्रमा को और देखा कि चंद्रमा ने ‘वनं च तत्कोमलगोभिरंजित’ उस वृन्दावन-वन को अपनी कोमल किरणों से, कोमल रश्मियों से रंग दिया है। श्रीकृष्ण ने बाँसुरी हाथ में उठायी- ‘जगौ कलं वामदृशां मनोहरं’- बज उठी बांसुरी कैसी बाँसुरी? जगौ कलं इसमें क चीज देते हैं और एक चीज लेते हैं। आप देखो, दानादान बिलकुल बराबर हैं। देते हैं क्या? तो कलं कं सुखं लाति ददाति- सुख देते हैं। और छीनते हैं क्या? ‘किं मनोहरम्’ – मन छीनते हैं। मन को तो लूट लेते हैं परंतु सुख देते हैं। ‘मनोहरम्’- कल आपको सुनाया था, मन को क्यों हरण कर लिया। अरे, अब मनोज की क्रीड़ा होने वाली है, मनीराम तुम यहाँ रहोगे तो मनोज शर्म करेगा, शर्मायेगा। मनोज माने कामदेव। बाप मौजूद हो तो शर्मायेगा। तो मन का हरण कर लिया। बोले- उसके रूप को थोड़ी देर के लिए अपने पास बन्द कर लिया, मन रहेगा तो उसको पाप-पुण्य लगेगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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