विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों ने वंशी-ध्वनि सुनीजैसे- रसगुल्ला चासनी में पग जाता है वैसे मैं उस रसिक शिरोमणि, रसिकेंद्र चक्रवर्ती, नन्दनन्दन, मुरली-मनोहर, श्याम सुन्दर के रस में पग गयी। एक जू मेरी अखियँन में निशि दिन बसिब रह्यो करि भौन- एक वह श्याम सुन्दर है जो रात-दिन मेरी आँखों में रहता है, उसने हमारी आँख को अपना घर बना लिया है। गाय चरावन जात सुन्यो सखि, सोधौं कन्हैया कौन?- मैंने सुना है कि वह गाय चराने भी जाता है, सो वह कृष्ण कौन है जो गाय चराने जाता है? कृष्ण तो चौबीसों घंटे हमारी आँखों में बसता है। बड़ा सुन्दर पद है। श्रीजीव गोस्वामीजी ने पूछा- कि प्यारे भाई, यह पद तुमको कहाँ मिला? तो उसने बताया कि एक गदाधर भट्ट सज्जन हैं, वे कभी वृन्दावन आये नहीं हैं; उनका बनाया हुआ यह पद है, तो जीव गोस्वामी ने एक श्लोक लिखकर भेजा गदाधर भट्ट के लिए- अनाराध्य राधापदाम्भोजयुग्मं, अनाश्रित्य वृन्दाटवीं तत्पदाकांम् । पूछा उन्होंने- कि भाई मेरे। तुमने राधिकारानी के युगल चरणारविन्द की तो आराधना की नहीं और श्रीराधारानी के चरणों से चिह्नित वृन्दावटीका, वृन्दावन का, आश्रय तुमने लिया नहीं और श्रीराधिका के भाव से जिनका चित्त गंभीर है, जिनके गंभीर भाव समुद्र में प्रेम की तरंगें उठा करती हैं, न महापुरुषों से बातचीत कभी की नहीं, उनका सत्संग किया नहीं, फिर, कुतः श्यामसिन्धौ रसस्यावगाहः- रसस्वरूप श्याम-सिन्धु में अवगाहन तुमको कहाँ से प्राप्त हुआ। इसका अर्थ हुआ कि वृन्दावन का रस प्राप्त करने के लिए तीन बातें आवश्यक हैं- राधारानी के चरणारविन्द की आराधना, श्रीवृन्दावन का समाश्रय और तद्भाव भावितान्तःकरण महापुरुष के साथ सत्संग। ये तीन बातें प्राप्त होवें तब उस रस स्वरूप श्यामसिन्धु में अवगाहन प्राप्त हो। विषय बड़ा गंभीर है। वैसे वेदान्त में पूर्ण निष्ठावाले हमारे एक महात्मा कहते थे कि जिन लोगों को ‘नेति-नेति’ से निषेध का संस्कार प्रबल हो जाता है और अपने स्वरूप में स्थित हो जाते हैं, उनको सदेहमुक्ति, विदेहमुक्ति, सब प्राप्त हो जाती हैं, लेकिन इस सच्चिदानन्घन लोक का आविर्भाव किसी के सामने होता है और किसी के सामने नहीं होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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