विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीभगवान ने वंशी बजायीतो भगवान में प्रेम हो जाने पर पूरी तरह वासना मिट जाती है पर किसकी मिटेगी, जो दिल से मिटाना चाहता है, उसकी मिटेगी। तो ‘मनोहरम्’- भगवान बोले कि अच्छा देखो- तुम्हारे मन में हम एक वासना देते हैं। वासना का लाभ पहले मालूम नहीं पड़ता। एक की वासना होवे तो अनेक की वासना मिट जायेगी। अनेक की वासना तो व्यभिचरा है। जिन्दगी भर हाथ में वरमाला लिए ही घूमते रहोगे कि किनको पहिरावें? इनको कि इनको? जिन्दगी भर हाथ में वरमाला रहेगी कि हमारा यह प्यारा, कि हमारा यह प्यारा। कोई जीवन हुआ, यह कोई जिंदगी हुई? अरे बाबा। एक बार कृष्ण के गले में वरमाला पहना दो। फिर स्वयंवर तो समाप्त हुआ। यह मनोवैज्ञानिक पद्धति है कि यदि धर्म में श्रद्धा हो तो जीवन में सौ-में से पचास बखेडे निबट जाएंगे जो धर्म के विपरीत है सो सब छूट जायेंगे। और यदि एक भगवद्- वासना उदय हो जाए, यदि यह चुनाव पूरा हो जाय कि हम भगवान को वरते हैं तो सौ में से निन्यानबे वासनाएं मिट जाएंगी- भरी सराय रहीम लखि पथिक आप फिर जाय। भर गया न दिल। बोले- भाई अब तो चुन लिया, चुनाव हो गया। तो अगर आपके मन में सौ वासना हो और मन में एक वासना कृष्ण की डाल दो तो सौ वासना मिट जाएगी। एक कृष्ण की वासना रह जाएगी। यह वासना मिटाने का मार्ग है, यह हृदय की शुद्धि का मार्ग है। यह अपने जीवन को ब्रह्मसंस्थ करने का मार्ग है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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