विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीभगवान ने वंशी बजायीमनोहर एक तो सुन्दर होता है और दूसरे होता है मन को हरण करने वाला। आप देखो- अपने मन से कोई जब काम किया जाता है तो जिम्मेदारी अपने पर रहती है और बड़ों के कहने से कोई काम किया जाए तो बड़ों पर चली गयी जिम्मेवारी। तो ‘मनोहरम्’ का अर्थ है कि भगवान ने सोचा कि गोपियों के पास यदि मन रहेगा तो वे अपने मन में सोचेंगी कि हमको पाप लगेगा कि पुण्य लगेगा। तो आओ मन ही भगा लें-मा भूदासामनुरपि अधर्मसंस्पर्श इत्यनन्तात्मा इनको पाप-पुण्य का बिलकुल स्पर्श नहीं हो, इसलिए पाप-पुण्य के कारण मन को ही भगवान् ने अपनी ओर खींच लिया। भगवान् ने कहा- बाबा; इस रास में गोपियों की जिम्मेवारी नहीं, हमारी जिम्मेवारी है; पाप लगेगा तो हमको, पुण्य लगेगा तो हमको, इसलिए बाँसुरी बजाकर उनको मन को चुरा लिया। मन से कहा- हे मन! देखो- तुम्हारे बेटे-बेटी आज बड़ा-बड़ा खेल खेलेंगे। मन के बेटे को आप जानते हैं? मन के बेटे का नाम है मनोज। मनोज माने काम होता है। मन के बेटे का नाम है काम, उसकी बेटी हैं बहुत सी स्मृतियाँ आदि। जैसे घर के बच्चे, बेटे, बेटी खेल रहे हों आंगन में और बाप बैठकर देखे तो उसका मजा आएगा कि नहीं? तो भगवान् ने कहा- हे मनीराम आज आओ देखो- तुम्हारे बेटे-बेटी खूब खेलेंगे, रास करेंगे। तुम जरा तमाशा देखो तो! देखो आज तुम्हारा बेटा क्या-क्या गजब ढाता है। ‘मनोहरम्’- मनोहरम् का क्या अर्थ है? भगवान् की जो वंशीध्वनि है यह मनके लिए हर है। हर माने होता है शंकर। शंकर करते हैं संहार। तो यह भगवान् की वंशीध्वनि क्या करती है? यह संसारी मन का संहार करती है। जो इसको सुन लेता है उसकी संसार-वासना मिट जाती है। अब यह है कि आजकल पहले परचा बाँटो, गाँव में प्रचार करो, लाउडस्पीकर लगाओ, पंखा चलाओ, जूते का बन्दोबस्त करो, फिर कथा कहो। तो केवल पारमार्थिक वृत्ति के लोग आवेंगे, ऐसा तो होगा नहीं, इसमें तो सांसारिक वृत्ति के लोग भी आते हैं; और सांसारिक वृत्ति के लिए यह है भी कथा। संसार से परमार्थ में ले जाने वाली कथा उनके लिए हित है लेकिन कौन अपनी वासना को मिटाना चाहता है और कौन अपनी वासना को पूरी तरह नचाता है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
प्रवचन संख्या | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज