विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीभगवान ने वंशी बजायीये जो मुड़े हुए तार लगाते हैं, कँटीले तार, इनका आप देखना, भागवत में वर्णन है। जब भौमासुर पर आक्रमण किया था भगवान श्रीकृष्ण ने, तो उस समय मुरपाश से उसकी वह नगरी घिरी हुई थी, खाईं भी थी और दीवार और बिजली थी। सात प्रकार की जो चहारदीवारी थी, पानी की अलग, पत्थर की अलग, आग की अलग, उसमें एक मुड़े हुए तारों की थी। उसी को वहाँ मुरपाश बताया है। उसका एक मिनिस्टर था कि उन तारों को कोई पार न करे। भगवान ने उसको मारा, तब मुरारी हुए। तो ये जो आठ मुर हैं न, हृदय में कुल, शील, धन का अभिमान, घृणा, शंका, भय, लज्जा और जुगुप्सा जो इस मुर को छीन ले, वह है वंशी। दिल में ईश्वर से, भगवान से, श्रीकृष्ण से प्रेम करने मं जो प्रतिबन्धक हैं, जो विघ्न हैं इनको हरण करने वाली है मुरली। मुरली मे विघ्नहारिणी। जगौ कलं वामदृशं मनोहरम्- भगवान ने बजाया कल कं सुखं लाति इति कलम् जो सबको सुख द इसका नाम कल। कल माने चैन गाँव में बोलते हैं- आज कल नहीं मिला, थोड़ा कल मिल जाय, तो सब ठीक हो जाय। सी कल से कल्य बनता है फिर इसी से कल्याण बन जाता है। ये कल, कल्य, कल्याण शब्दों की परंपरा है। भगवान ने कल बजाया। कल बजाया माने सुखदान प्रारम्भ किया। पहले सबको सुख में सराबोर करदे। बात यह है कि संसार के जीव दुःखी हैं। चाहे बात करें न्याय-शास्त्र की, चाहे योगसास्त्र की, चाहे पूर्वमीमांशा की और चाते उत्तर-मीमांसा की, परंतु हैं दुःखी। इसीलिए जहाँ सुख मिलता है वहाँ इनका आकर्षण होता है। भगवान ने कहा- सच बोलो। कहने से जीव सच बोलने वाले नहीं है। ज्ञान देने से भी ये खिंचने वाले नहीं है। वेदान्त का सत्संग करके लोग लौटते हैं अपने घर में, तो स्त्रियाँ कहती हैं कुछ ले आये? बोले- लाये तो कुछ नहीं। हम सत्संग करके आये हैं। कहती हैं- वेदान्त का सत्संग लेकर क्या खाओगे? बने रोटी बेदान्त के सत्संग की? इनके घर में तो बेईमानी की रोटी बनती है, वेदान्त की रोटी थोड़े ही बनेगी। वहाँ तो छल की रोटी बनती है, कपट की रोटी बनती है। इनको कितना भी उपदेश करो, पर ये तो महाराज- मूरख हृदय न चेत जौं गुरु मिलैं बिरंचि सम। तब इनको मजा चाहिए, मजा, इनको सुख चाहिए। बोले-लो भाई तुम्हारे लिए नचनियाँ बन जाते हैं, गवैया बन जाते हैं, गवैया बन जाते हैं। बजैया बन जाते हैं। लोगों का मन अपनी ओर खींचने के लिए आखिरी शस्त्र भी श्रीकृष्ण ने छोड़ा- ‘जगौ कलम्।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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