विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीभगवान ने वंशी बजायीवनम्- तो नारायण!!! इसका नाम वन है।भ्रातस्तिष्ठ तले–तले विटपिनां ग्रामेषु भिक्षाटनं, अरे ओ मेरे भाई! तुम्हें रहने के लिए स्थान की जरूरत है, तो वृक्षों के नीचे रह लेना। एक दिन एक वृक्ष के नीचे, दूसरे दिन दूसरे वृक्ष के नीचे, तले तले- विटपिनाम्। खायेंगे क्या? गाँवों में भिक्षा मिल जाएगी भाई! पियेंगे क्या? चीर जो रास्ते में पड़े रहते हैं उन्हीं को पहन लेना। सम्मान को समझो विष और अपमान को समझो अमृत और भजन करो राधा-मुरलीमनोहर का। मगर वृन्दावन को मत छोड़ो। और रहने का बन्दोवस्त हो जाए, खाने-पीने का बन्दोवस्त हो जाय, और सम्मान भी प्राप्त हो, तब तो फिर कहना क्या। वृन्दावनं वनं च, ‘तत्कोमल गोभिरञ्जितम्’- चंद्रमा ने अपनी अनुरागमयी रश्मियों से वन का एक-एक पत्ता रंग दिया। माने उन्होंने उत्सव का प्रारम्भ कर दिया। जब किसी के घर में उत्सव होने वाला होता है, झण्डा लगाते हैं, पताका लगाते हैं। अगर आदमी में वित्तशाठ्य हो तो उत्सव नहीं करना चाहिए। उत्कृष्टतः सवात् इति उत्सवः जो यज्ञ से भी श्रेष्ठ है उसका नाम उत्सव। उत् माने ऊर्ध्वश्रेष्ठ औ सव माने यज्ञ। उत्सव करना कब? जब दिल में कंजूसी न हो। तो, श्रीकृष्ण के रासोत्सव का प्रारम्भ है। कल आपको बताया था, कि चंद्रमा पूर्वज भी है श्रीकृष्ण का और लक्ष्मी का भाई भी है, और अत्रि की सन्तान होने के कारण ब्राह्मण भी है। सोमोऽस्माक ब्राह्मणानां राजा- उत्सव का प्रारम्भ हो तो किसके हाथ से, ब्राह्मण के हाथ से- मंगल हो गया महाराज। ब्राह्मण की बड़ी महिमा है। जिसके पूर्वजों ने आदि काल से अब तक वेद-शास्त्र-पुराण-धर्मानुष्ठान-श्राद्ध मूर्तिपूजा, सनातन धर्म की परंपरा को धारण किया, उसकी रक्षा की, उसकी बड़ी महिमा है। उनके द्वारा मांगलिक कार्य प्रारम्भ होता है। तो, चंद्रमा ने रंग दिया, बोले, हम तो तुम्हारे साथ हैं। अब ब्राह्मण यदि बोल दे कि इस काम में अधर्म नहीं हैं; बोल दे कि यह यज्ञ संपन्न हो गया, भले त्रुटिपूर्ण हो तो यजमान के लिए वह सम्पन्न हो जाता है। ब्राह्मण झूठ बोले, तो उसका अपराधी ब्राह्मण होगा, लेकिन यजमान के लिए वह सर्वांगपूर्ण हो गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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