विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीभगवान ने वंशी बजायीऐसा वर्णन है महाप्रभु के जीवन चरित्र में; फिर वे वृन्दावन आये, वृन्दावन में आकर उन्होंने वृन्दावन– महिमामृतम्, नाम की एक पुस्तक लिखी। अब कहाँ एक जीववाद और कहाँ वृन्दावन- महिमामृत। कहते हैं- वृन्दावन-महिमामृत में एक लाख श्लोक उन्होंने लिखे थे। एक लाख श्लोक तो अभी मिले नहीं है, पर सत्रह-सौ श्लोक छपे हुए मिलते हैं और उनमें वृन्दावन-महिमा का वर्णन है। अब देखो-कोई सुनेगा कि कहाँ तो इतना बड़ा वेदान्ती और कहाँ वृन्दावन का वर्णन। हम भी पहले ऐसे ही सोचते थे। जब मैं वृन्दावन में आया तो मैंने स्वयं तो नहीं पढ़ा वृन्दावन महिमामृत। पर एक सज्जन को पढ़ना था, तो वह मुझसे पढ़ने के लिए आने लग गये। आपको क्या बताऊँ, बहुत आनन्द आया उसमें। उसके पढ़ने की एक ही तरकीब है, युक्ति है, कि उसमें ब्रह्म शब्द के बदले बस वृन्दावन शब्द रखा हुआ है। वर्णन है समूचा ब्रह्म का, और है नाम वृन्दावन का। यह बात जिनको मालूम न हो, उनकी जानकारी के लिए यह बात सुन रहा हूँ। वृन्दावन और ब्रह्म दोनों शब्दों को उन्होंने पर्यायवाची कर दिया। ब्रह्म का एक नाम वृन्दावन है और वृन्दावन का एक नाम ब्रह्म है। और वर्णन है- स्थूलं सूक्ष्मं कारणं ब्रह्म तूर्यं वैकुण्ठाख्यो द्वारका जन्मभूमिः । वे कहते हैं- देखो स्थूल सृष्टि है, छोड़ो, ऊपर उठो। सूक्ष्म सृष्टि है, ऊपर उठो। माने विश्व में जो वैश्वानर है, विराट है, उससे ऊपर उठो- तैजस- हिरण्यगर्भ है, उससे ऊपर उठो। उसके बाद फिर कारण सृष्टि है, उसमें प्राज्ञ ईश्वर है। उससे भी ऊपर उठो, तुरीय ब्रह्म में आओ! फिर बोले कि अच्छा, ब्रह्म को जान लो तो ये ईश्वर हिरण्यगर्भ और विराट ये तीनों ब्रह्म ही हैं न? और अवस्थाएं जो हैं, वे इनमें कल्पित हैं, इसलिए ब्रह्म से जुदा नहीं है। एक अद्वितीय ब्रह्म हो गया। अब बोले- तुम्हारे प्रपंच की निवृत्ति हुई? निवृत्ति नहीं, बाध हुआ, क्योंकि प्रतीति तो होती रही। तो बोले, कि देखो ब्रह्मज्ञान होने के बाद ब्रह्म के सिवाय कुछ नहीं है। जब यह बोध हो गया, उसके बाद कारण सृष्टि और प्राज्ञ ईश्वर- ये दोनों वैकुण्ठ हैं, और सूक्ष्म सृष्टि और तैजस हिरण्यगर्भ द्वारका हैं; और विश्वसृष्टि और वैश्वानर विराट्- ये मधुरा हैं; और सब ब्रह्म हैं। अब इस मथुरा- मण्डल में जैसे अपना शरीर हो, ऐसे वृन्दावन है, भला! और जैसे शरीर में अपना हृदय हो, वैसे नित्य निकुञ्ज है, जिसमें भगवान श्रीराधा-कृष्ण बिहार करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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