विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास में चंद्रमा का योगदानयोगमाया के संबंध में श्रीवल्लभाचार्य महाराज ने श्रीसुबोधनी टीका में लिखा है- कि योगमाया का काम है एक वस्तु को ज्यों-की-त्यों बिना उसमें अदला-बदली किए- एक जगह से दूसरी जगह रख देना। जैसे बलरामजी थे देवकी की पेट में- योगमाया ने क्या किया? कि गर्भ को ज्यों का त्यों, बालबाँका न हो, उठाकर रोहिणी के पेट में रख दिया। तो यहाँ रास के प्रसंग में- ‘योगमायामुपाश्रितः’ का अर्थ हुआ कि अन्यत्र स्थापयति- योगमाया ने भगवान के हृदय में जो आनन्द था उसको गोपी के हृदय में रख दिया। अब गोपी हो गयी, आनन्दमयी, गोपी हो गयी आनन्दरूप। और गोपी के हृदयदर्पण में अपनी छवि निहारकर भगवान प्रसन्न होने लगे। बाहर स्वयं ज्यों-का-त्यों रहते हुए वही मुरली-मनोहर पीताम्बरधारी श्यामसुन्दर, गोरोचनांकित भाल, अनुग्रहपूर्ण भौंहें, प्रेमभरी चितवन, वही सुचिक्कन नीलम के समान चम-चम चमकता हुआ कपोल, वही आरक्ताधर, वही पीताम्बरधारी श्यामसुन्दर बाहर खड़े हैं और अपने को देख रहे हैं, गोपी के हृदय में। बोले-अरे। मैं एक और अनेक रूप में? प्रसन्न हो गये। तदोडुराजः ककुभः श्रीसुबोधिनीजी ने बताया- कि जब भगवान में मन का उदय हुआ तब चंद्रमा ने कहा- आओ-आओ, बहती गंगा में नहायें। अधिदेवता बनकर आ गया। चाँदनी छिटक गयी, पुष्टि मिल गई सबको। चंद्रमा ओषधि- वनस्पतियों को पुष्टि देता है, शोक को नष्ट करता है। अब श्रीकृष्ण की उस पर दृष्टि पड़ी। दृष्टा कुमुद्धन्तमखण्डमण्डलं रमाननाभं नवकुंकुमारुणम् । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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