विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीउपक्रमअरे ! यहाँ तो आओ गोपी-कृष्ण का आनन्द लें-
एक गोपी है और एक कृष्ण हैं, फिर एक गोपी और एक कृष्ण हैं, फिर एक गोपी है कृष्ण हैं। गोपी कोई गोरी है कोई सांवरी है, कोई पीली है कोई लाल है, किसी की साड़ी पीली है, किसी की लाल है, किसी की नीली है, किसी की हरी है। तरह-तरह का लहँगा पहने तरह-तरह का ओढ़ना ओढ़े तरह-तरह की रंग रूपवाली, तरह-तरह की नाम-रूपवाली हजारों गोपियाँ हैं और गोपी के साथ एक-एक पीताम्बरधारी मुरली मनोहर मोरमुकुटवाले श्यामसुन्दर हैं, मन्द-मन्द मुस्काते हुए, ठुमुक-ठुमुक कर पाद-विन्यास करते हुए और प्रेम-भरी चितवन से देखते हुए, आँख नचाते हुए, मुँह मुस्कराते; ठुमुक-ठुमुक कर चलते हुए पीताम्बर को फहराते, प्रत्येक गोपी के साथ एक – एक नन्दनन्दन लगे हैं। अरे! आओ न, अपने मन को इसमें डाल दो। देखो दुनिया भूलती है कि नहीं भूलती है। इस कृष्ण की वासना उत्पन्न करने के लिए- जैसे हमारा प्रेम श्रीकृष्ण के साथ जुड़े इसके लिए यह रास पञ्चाध्यायी की कथा है। अगर तुम्हारे दिल में दुनिया में प्रेम न हो तो हम एक बार कह सकते हैं- चलो छुट्टी! तुम अपनी असंगता से ही मुक्त हो जाओगे। लेकिन जब दुनिया में तुम्हें रस है, दुनिया में प्रीति है तो रसान्तर की आवश्यकता है, भगवद् रस की आवश्यकता है। वह तुम्हारे हृदय में भगवद्-रस का संचार करके भगवान की ओर ले चलेगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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