विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास-रात्रि में पूर्ण चंद्र का दर्शननयना रे चित चोर बताओ- चोर के नाम से प्रसिद्ध हैः- अपहरति मनो मे कोप्ययं कृष्णचौरः। अरे ये कोई काला-काला चोर हमारे मन को चुराये जा रहा है। दौड़ो-दौड़ो काला चोर है यह। अपहरति मनो मे कोप्ययं कृष्णचौरः अरे! यह तो आँख चुरा ले, दिल चुरा ले; दिल चुरा ले; यह तो मन चुरा ले, यह मक्खन का चोर नहीं है। ‘पश्यतां सज्जनानां’ और महाराज। चोरी करें तो सज्जनों की। एक चोर था, रोज-रोज चोरी करे, एकादशी को भी नहीं छोड़ता था। एक चोर था, दुर्जनों की तो चोरी करे, सज्जनों को भी नहीं छोड़ता था। ये जूताचोर लोग सत्संग में भी आ जाते हैं कि नहीं? औरों की गाँव में चोरी करें सो तो करें, विचारे सत्संगियों की भी चोरी कर ले जाते हैं। हमारे बाबा जी लोगों की भी चोरी हो जाती है। तो यह कृष्ण चोर है, काला चोर है, यह प्रिय है। दृष्टा कुमुद्वन्तं- पाँच धर्म लेकर चंद्रमा को देखा। कुमुद्वन्त अखण्डमंडलं, रमानानाभं, नवकुंकुमारुणम् चंद्रमा है आसमान में पर कृष्ण को बता रहा है; कुमुद्वन्तं- अकेला चंद्रमा और धरती में कुमुदुनि करोड़ो हैं। कुमुदिनी क्या? ये कोइन होती हैं, तालाब में चंद्रमा को देखकर ये खिलती हैं। महाराज। संसारी जो प्रेमी होते हैं न, इनसे ते यो कोइन बिचारी अच्छी हैं। कहा- क्यों इनमें ईर्ष्या दोष तो नहीं होता न, करोड़ो कोइन, अरबों कुइन एक चंद्रमा को देखकर मुस्करा पड़ती हैं न, एक दूसरे की ओर नहीं देखती हैं, सब की सब चंद्रमा की ओर देखती हैं। श्रीकृष्ण ने कहा कि हे चंद्र। हमारा काम करने के लिए तुम आसमान में क्यों उगे। बोले- गोपियों के मन में कभी सौतियाडाह आवेगा तो चंद्रमा कहेगा- जरा हमारी ओर देखो, करोड़-करोड़ कुमुदिनी हमसे प्रेम करती हैं पर उनमें ईर्ष्या दोष नहीं होता; फिर तुममें क्यों हो रहा है? तो गोपियों के चित्त का समाधान करेगा, इसलिए आसमान में चंद्र उगा ‘कुमुद्वन्तं अखण्डमण्डलम्’। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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