विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीरास-रात्रि में पूर्ण चंद्र का दर्शनतो प्रीति बड़ी विलक्षण है। प्रेम में पहली बात बतायी कि चाहे टूटने के कितने कारण मौजूद हों, परंतु टूटे नहीं। और दूसरी बात यह होती है कि प्रेमी के हृदय में कठोरता नहीं आती। उसके पास कोई वस्तु अदेय नहीं है, कोई भी अपनी वस्तु नहीं है। और (3) तीसरी बात है कि प्रेम हमेशा पूर्ण रहता है फिर भी बाँका, थोड़ी आँख टेढ़ी हो जाती है, थोड़ा मुँह टेढ़ा, थोड़ी बोली में बाँकपना आ जाता है। (4) चित्त जब विश्वास की भूमिका में पहुँचता है तो वहाँ से अखण्ड प्रेम का उदय होता है, तब हृदय नरम हो जाता है, हृदय का निर्माण होता है, हृदय कोमल हो जाता है परंतु उसके बाद? उस निर्माण में भी मान रहता है। निर्माण में मान रहता है और निर्भय होता है प्रेम। (5) पाँचवीं बात है कि जिससे प्रेम हो, उसमें यदि दोष दिखें तो सेवा की भावना बढ़ती है, घटती नहीं है। यदि दोष देखकर सेवा की भावना घट जाय तो समझना प्रेम नहीं है। कहा- रोज तो घण्टों कंपनी देते थे, फिर एक दिन आ गया उन्हें बुखार तो बोले आज मत जाओ नहीं तो हमको भी इन्फेक्शन हो जाएगा। कहा- नहीं प्रेम में जर नहीं होता- तन्वानं सम्प्रदोषे। अरे भाई पहले तो बहुत अच्छे थे तब हमने प्रेम किया अब पीने लगे शराब तो तोड़ दो। जिससे पहले यह बात हुई थी कि हम धर्म के अनुसार चलेंगे, उसने धर्म तोड़ दिया तो सारी मर्यादा ही तोड़ दी। लेकिन प्रेम तो दूसरी चीज है। अरे, अब उस समय आओ, उसकी नाली से उठाओ उसका नशा उतारो, उसको धीरे-धीरे समझाओ कि बाबा! ऐसा काम नहीं करना। यह देखो- प्रेम अटूट है, प्रेम से हृदय की कठोरता मिट जाती है, प्रेम हृदय का निर्माण तो करता है पर थोड़ा मान रखता है, अपने प्रियतम की सेवा के लिए। प्रेम में निर्भयता होती है और दोष में वह बढ़ता है। (6) अब छठी बात प्रेम नित्य नया रस देता है। और (7) सातवीं बात प्रेमी और प्रियतम दोनों मिलकर एक हो जाते हैं। ये सात बातें प्रेम में आनी अनिवार्य हैं। प्रेम द्वैत नहीं है, प्रेम अद्वैत है। प्रेम बीच में कोई बात सहता ही नहीं है। आज किसी से चर्चा कर रहा था- कोई भी चीज दो तब होती है जब उसके बीच में तीसरी चीज होती है, और जहाँ तीसरी चीज नहीं होती वहाँ दो चीज नहीं होती। दो उँगली दो हैं क्योंकि दोनों के बीच में पोल है। हम तुम दो हैं क्योंकि बीच में पोल है। यह अवकाश नहीं हो, यदि दोनों का अभाव दोनं के बीच में न हो तो दो चीज होवे ही नहीं। रस्सी और साँप दो हैं कि एक? हे भगवान्! अज्ञान है तब दो हैं और अज्ञान मिट गया तो दो नहीं एक ही है। जिस चीज का नाम रस्सी उसी चीज का नाम साँप। हे नारायण; मिथ्या और सत्य दो वस्तु नहीं होवें, सत्य के प्रतिद्वन्द्वी का नाम सत्य नहीं है, मिथ्या के प्रतिद्वन्द्वी का नाम सत्य नहीं है, क्योंकि मिथ्या किसी का प्रतिद्वन्द्वी हो ही नहीं सकता क्योंकि वह है ही नहीं। इसलिए सत्य और मिथ्या दोनों असल में एक ही होते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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