विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीउपक्रमइसी से निष्ठा का पता चलता है। जिसके जीवन में रस उत्पन्न नहीं होता वह निष्ठावान नहीं होता। उसका भाव उसका प्रेम टिकाऊ नहीं होता। पूर्व की हवा आयी तो पश्चिम उड़ गये, पश्चिम की हवा आयी तो पूर्व उड़ गये। उनका जीवन आँधी-तूफान में जैसे नाव आती-जाती है वैसे ही रहता है। वह निष्ठा उनके जीवन में नहीं हो सकती। यह जो रास पञ्चाध्यायी है, इसका मुख्य काम क्या है? इसका मुख्य काम है हमारे जीवन में श्रद्धा का रस, भाव का रस, भक्ति का रस, प्रेम का रस, भगवद् रस, हमारे हृदय में पैदा कर देना। भगवान का रस हमारे हृदय में आवे, तब आपको मालूम पड़ेगा कि कृष्ण किसका नाम है। वही बाँसुरी वाला है और वही साँवरा-सलोना है। दीनता नहीं है, इसमें मरने की जरूरत नहीं है। इसके साथ अपने को जोड़ देने की जरूरत है। यह प्रीति की रीति बड़ी निराली है। यह तत्त्व की चर्चा बिल्कुल नहीं है। इसमें आध्यात्मिक भाव निकालने की आवश्यकता नहीं है। यों लोग निकालते हैं, वर्णन करते हैं, लेकिन जब – ‘अपूर्वं अनपरं, अनन्तरं अब्राह्मम्’ यह श्रुति है- ‘अशब्दं, अस्पर्श, अरूपं, अगन्धं, अरसवतं’ श्रुति है और उसमें से साफ-साफ अध्यात्म का तत्त्व का और ब्रह्म का निरूपण निकलता हैतो हर जगह उसको भरने की क्या जरूरत है? जहाँ जो है वही निकलना चाहिए। रास रास के रूप में ही मनुष्य के हृदय को भगवान के साथ जोड़ने वाला है। यहाँ यह आध्यात्मिक चर्चा करने की नहीं है कि गोपी माने चित्तवृत्ति और कृष्ण माने दो चित्तवृत्तियों की सन्धि में स्थित चैतन्य। बोले- बाबा- यह बात तो माण्डूक्य कारिका में सुना देंगे कि दो वृत्तियों की सन्धि में कैसे चैतन्य होता है- वृत्तयोऽखिलसन्धीनाम् अभावाश्चावभासिताः । सारी वृत्तियों की सन्धि और उनकी वृत्तियों का अभाव किस तुरीय तत्त्व के द्वारा उद्भासित होता है वह तो वेदान्त के प्रवचन में साक्षात् बतायेंगे। उसको यहाँ रास- रस में से निकालने की जरूरत है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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