राधे तेरे नैन किधौ मृगबारे।
रहत न जुगल भौंह जूये तैं, भजत तिलक रथ डारे।।
जदपि अलक अंजन गहि बाँधे, तऊ चपल गति न्यारे।
घूँघट पट बाँगुर ज्यौ बिडरत, जतन करत ससि हारे।।
खुटिला जुगल, नाक मोती मनि, मुक्तावलि गरहारे।
दोउ रुख लिये दीपिका मानौ, किये जात उँजियारे।।
मुरली नाद सुनत कछु धीरज, जिय जानत चुचकारे।
'सूरदास' प्रभु रीझि रसिक पिय, उमँगि प्रान धनवारे।।2740।।