राधे कत तू खरिक गई री।
अब चलि देखि प्रानपति की गति तब तै कहा भई री।।
जा छन तै तै दई दिखाई कर दोहनी लई री।
ता छन तै मन परी चटपटी गाइ न दुहन दई री।।
अब ताकौ उपचार करै किन प्रीति की बेलि बई री।
अनँगराज सीचत कुभी लै लागौ प्रेमजई री।।
चलि बलि फिरि चित बन दै मन दै मन उर की गई री।
'सूरदास' प्रभु स्यामसुंदर मन मथियत कामरई री।। 63 ।।