राधा नयन कटाक्ष रूप -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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राग भीमपलासी - ताल कहरवा


राधा-नयन-कटाक्ष-रूप चचल अचलसे नित्य व्यजित-
रहते, तो भी बहती जिनके तनसे स्वेदधार अविरत॥
राधा-‌अंग-कान्ति अति सुन्दर नित्य निकेतन करते वास।
तो भी रहते क्षुब्ध नित्य, मन करता नव-विलास-‌अभिलाष॥
राधा मृदु मुसकान-रूप नित मधुर सुधा-रस करते पान।
तो भी रहते नित अतृप्त, जो रसमय नित्य स्वयं भगवान॥
राधा-रूप-सुधोदधि में जो करते नित नव ललित विहार।
तो भी कभी नहीं मन भरता, पल-पल बढ़ती ललक अपार॥
ऐसे जो राधागत-जीवन, राधामय, राधा-‌आसक्त।
उनके चरण-कमलमें रत नित रहे हु‌आ मम मन अनुरक्त॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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