राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 89

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीगोपदेवी-लीला

देवी- किसोरी जू, आप तौ यहाँ बैठी हौ और आप के प्यारे नंदगाँव होंय अथवा बन में गैया चराय रहे होंय। आप यहाँ सूं उन कौ स्मरण करौ और वे यहाँ आय जायँ, तब आप की बात कूँ सत्य मानूँगी।
श्रीजी- अच्छौ, सखी! आऔ। हम सब मिलि कैं कीर्तन करैं।
(पद)

आऔ पिया, तुम नंद दुलारे!
तिहारे दरस बिनु ब्याकुल मन भयौ, जीवन प्रान हमारे।।
वह आवनि, वह हँसनि माधुरी, नैन कमल रतनारे।
सूरदास प्रभु बेगि मिलौ अब मो अखियन के तारे।।

श्रीजी- सखी, वह देबी कहाँ है? वाकौं अबहूँ विस्वास भयौ कि नाहीं।
(ठाकुरजी छद्म-भेस त्याग करि कैं श्रीजी के पास पधारैं)

श्रीकृष्ण-

(दोहा)

अहो प्रानप्रिय राधिके! जो दुख बीत्यौ तोहि।
बीत्यौ, ताहि बिसारि कैं, हृदय लगावहु मोहि।।
अब कवहूँ जनि भूलि कैं मन मति करौं कुरंग।
पलक न अंतर परैगो, सदा रहौं तुव संग।।

श्रीजी- सखी, वह देबी कहाँ है? वाकौं अबहूँ बिस्वास भयौ कि नाहीं?
सखी- प्यारी जू, वा देबी में ते तौ ये देवा प्रगट है गये।
श्रीजी- क्यों पधारे?
ठाकुरजी- हाँ, किसोरी जू! आप के दरसनन के ताईं रातदिन जुक्ति सोच्यौ करूँ हूँ।
इति श्री गोपदेबी लीला संपूर्ण

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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