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श्रीगोपदेवी-लीला
(सवैया)
- मोतिन की सुथरी दुलरी बर, सोहत सुंदर सीस टिपारौ ।
- आनन पानन रंग रच्यौ, निरखैं चखि चंचल लोचन तारौ ।।
- गोकुल गाँव गली बिहरैं लिऐं कंजकली कर रूप उज्यारौ।
- गुच्छन के अवतंस लसैं सिखिपिच्छन अच्छ किरीट बनायौ।
- पल्लव लाल समेत छरी कर-पल्लव में मतिराम सुहायौ।।
- गुंजन के उर मंजुल हार निकुंजन ते कढ़ि बाहर आयौ।
- आज कौ रूप निहारि, सखी! हम आजहि आँखिन कौ फल पायौ।।
(राग भैरव, ताल चौताल)
- ऐसे गोपाल निरखि तिल-तिल तन वारौं।
- नवकिसोर मधुर मुरति सोभा उर धारौं।।
- अरुन तरुन कंज नयन, मुरली कर राजै।
- ब्रजजन-मन-हरन बैनु मधुर-मधुर बाजै।।
- ललित बर त्रिभंग सु-तन बनमाला सोहै।
- अति सुदेस कुसुम-पाग उपमा कौं को है।।
- चरन रुनित नूपुर, कटि किंकिनि कल कूजै।
- मकराकृति कुंडल छबि सूर कौन पूजै।।
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