राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 368

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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रास-लीला के समय पूज्य श्रीभाई जी विरचित ‘पद-रत्नाकर’ के उपयोग पद

(राग ईमन-ताल त्रिताल)

झूलत सघन कुँज पिय-प्यारी।
घन गरजत, मृदु दामिनि दमकत, रिमझिम बरसत बारी।
भींजत अंबर पीत, अलौकिक नील सुरंगी सारी।
मद भर मोर-मोरनी निरतत कूजत कोकिल सारी।।
गावत मधुरे सुर मल्हार मिलि सखिजन अरु पिय-प्यारी।
झौंटे देय झुलावत सखि ललितादिक बारी-बारी।।
चितवत स्यामा-स्याम परस्पर नित नव रसि विस्तारी।
उमड़ि रह्यौ आनंद सरस निधि सबहि जात बलिहारी।।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पद-रत्नाकर, पद सं. 285

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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