राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 319

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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प्रेमाधीनता-रहस्य

(श्लोक)

सदा मुक्तोऽपि बद्धोऽस्मि भक्तेषु स्नेहरज्जुभिः।
अर्जितोऽपि जितोऽहं तैरवशोऽपि वशीकृतः।।

अर्थात्- मै सदा मुक्त हैकैं हूँ भक्तन के स्नेह पाश में बँध्यौ भयौ हूँ। और सबन कूँ तौ मैं बाँधूँ-छोरूँ हूँ, परंतु ये भक्त मोकूँ बाँधैं-छोरैं हैं। और सबन कूँ तौ मैं जीत लऊँ हूँ और ये भक्त मोकूँ जीत लेयँ हैं; सबन कूँ मैं बस करि राखूँ, ये भक्त मोकूँ बस करि मनमान्यौ स्वाँग भरावैं हैं और नाच नचावैं हैं। मैं नैंक हू अपनी भौंह टेढ़ी करि दऊँ तौ समस्त बिस्व ब्रह्माण्ड कौ प्रलय कर दऊँ। और ये गोपी मोपै नैक हू अपनी भौंह टेढ़ी करि दें तौ मोकूँ चरनन में लुटाय हा हा खवाय लेयँ हैं। याही सौं मैं स्वादीन ईस्वर भक्तन के आगें इतनौ पराधीन हूँ कि-

(श्लोक)

अहं भक्तपराधीनो ह्यस्वतन्त्र इव द्विज।
साधुभिर्ग्रस्तहृदयो भक्तैर्भक्तजनप्रियः।।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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