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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
प्रेमाधीनता-रहस्य(श्लोक)
अर्थात्- मै सदा मुक्त हैकैं हूँ भक्तन के स्नेह पाश में बँध्यौ भयौ हूँ। और सबन कूँ तौ मैं बाँधूँ-छोरूँ हूँ, परंतु ये भक्त मोकूँ बाँधैं-छोरैं हैं। और सबन कूँ तौ मैं जीत लऊँ हूँ और ये भक्त मोकूँ जीत लेयँ हैं; सबन कूँ मैं बस करि राखूँ, ये भक्त मोकूँ बस करि मनमान्यौ स्वाँग भरावैं हैं और नाच नचावैं हैं। मैं नैंक हू अपनी भौंह टेढ़ी करि दऊँ तौ समस्त बिस्व ब्रह्माण्ड कौ प्रलय कर दऊँ। और ये गोपी मोपै नैक हू अपनी भौंह टेढ़ी करि दें तौ मोकूँ चरनन में लुटाय हा हा खवाय लेयँ हैं। याही सौं मैं स्वादीन ईस्वर भक्तन के आगें इतनौ पराधीन हूँ कि-
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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