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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीरज-रसाल-लीला(पद)
एक कुम्हारिनि डलिया में माँटी के फल सजाय कैं लावै, ठाकुरजी की भेट करै, श्रीजी वाके फल बनायबे की चतुरतापै रीझि कैं वाकूँ पारितोषिक में वस्त्र-भूषन दैं, वो लैंकैं चली जाय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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