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श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ
श्रीचंद्रावली-लीला
हाँ, हाँ, मैं अच्छी भाँति जानूँ हूँ।
[श्रीजी नें सखी कूँ भेजि कैं स्यामसुंदर तथा उनके नवीन सखा कूँ न्यारे भवन में शय्या बिछवाई। तब चंद्राबली सखा कौ भेष बदल अपने निज स्वरूप सौं प्रीतम के चरन दाबन लगी]
सखी- हे किसोरीजी, वहाँ तो कछु और नवीन ही कौतुक है, आप चलि कैं देखौ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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