राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 276

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीसिद्धेश्वरी-लीला

जय अनेकन कोटि बिष्णु सु पाद-पद्म सदार्चिते।
अपार सिद्धि अनेक सुःख समूह जन हित सृज्यते।।2।।
स्याम संमोहन बसीकर मंत्र सास्त्र पटीयसी।
ललितादि अष्ट सखी समेत सु तेजपुञ्ज तपीयसी।।3।।

 

पूज्य श्रीभाईजी विरचित ‘पद-रत्नाकर’ से
प्रिया-प्रीतम दोउ करत किलोल।
रूप-उजागर नागरि-नागर बोलत मधुरे बोल।।
हास-बिलास करत दोउ रसमय, प्रीति न हिएँ समात।
श्रमित, हार नहिं मानत कोऊ, करत मधुर दोउ घात।।
निभृत निकुंज पुंज-सुख-माधुरि रस-स्वामिनि-रसराज।
तन-मन-प्रान अभेद, अलौकिक क्रीडत नित नव साज।।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पद-रत्नाकर, पद सं. 275

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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